उम्मीदों की यात्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे वक्त में चार दिवसीय प्रवास पर अमेरिका गये हैं जब पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण के संत्रास से उबरकर अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटी है तथा अफगानिस्तान में लोकतंत्र पर गनतंत्र हावी हुआ है।

जहां एक ओर यह यात्रा भारत और अमेरिका के बीच व्यापार, निवेश, रक्षा-सुरक्षा जैसे दो पक्षीय संबंधों को मजबूत बनायेगी, वहीं एशिया में सामरिक संतुलन व सुरक्षा चुनौतियों को लेकर भी विमर्श होगा, जिसमें आतंकवाद व चरमपंथ से निपटना भी प्रमुख मुद्दा होगा। इस यात्रा के दौरान जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी उनसे पहली बार मुलाकात करेंगे, वहीं भारतीय मूल की पहली अमेरिका महिला उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से भी मुलाकात करेंगे।

अमेरिकी नेताओं से दो पक्षीय मुद्दों पर बातचीत के अलावा मोदी 24 सितंबर को वाशिंगटन में क्वॉड शिखर सम्मेलन में पहली बार व्यक्तिगत रूप से जापान व आस्ट्रेलिया के प्रमुखों से मिलकर वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर बातचीत करेंगे। इस दौरान अमेरिकी कंपनियों के कई शीर्ष अधिकारियों से उनकी मुलाकात होगी।

उल्लेखनीय है कि मोदी इससे पहले 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में बहुचर्चित हाउडी-मोदी कार्यक्रम में शिरकत करने अमेरिका गये थे। उसके बाद कोरोना काल में गत मार्च में उनकी बांग्लादेश की एक संक्षिप्त यात्रा हुई थी।

इस यात्रा के महत्व का पता इस बात से चलता है कि उनके साथ उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल व विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला आदि वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।

अमेरिका यात्रा पर रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने कहा भी कि मैं राष्ट्रपति बाइडेन के साथ वैश्विक रणनीतिक साझेदारी, आपसी हितों के क्षेत्रीय व ग्लोबल मुद्दों पर विचार साझा करूंगा।

साथ ही विज्ञान और टेक्नोलॉजी क्षेत्र में सहयोग पर चर्चा को लेकर उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मिलने को उत्सुक हूं। अमेरिका में इंडियास्पोरा के संस्थापक एम.आर. रंगास्वामी ने कहा भी मोदी ऐसे समय में अमेरिका आ रहे हैं जब भारतीय अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने से देश मजबूत स्थिति की ओर बढ़ रहा है।

इसके अलावा प्रधानमंत्री जब 25 सिंतबर संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलेंगे तो दुनिया की उन पर नजर रहेगी। आजादी का 75वां साल मना रहे देश की प्रगति की चर्चा के प्रसंग में वे यूएन में जरूरी बदलाव व भारत की भागीदारी बढ़ाने की बात करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र के 76वें सत्र के संबोधन में जब वे नपे-तुले शब्दों में धारदार अंदाज में अपनी बात कहेंगे तो विकासशील देश उसे अपनी आवाज के रूप में सुनेंगे। जहां वे इस मंच पर भारत की चिंताओं का जिक्र करेंगे, वहीं घरेलू उपलब्धियों को दुनिया को बताने से भी नहीं चूकेंगे। स्वाभाविक रूप से महासभा के विमर्श के केंद्र में कोविड-19 की महामारी रहेगी।

वहीं आर्थिक मंदी, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, संयुक्त राष्ट्र में सुधार तथा अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद की स्थिति विमर्श के प्रमुख विषय रहेंगे। जाहिरा तौर पर पाकिस्तान व अफगानिस्तान के गठजोड़ से जुड़ी चिंता भी प्रधानमंत्री दुनिया को बताएंगे।

वहीं इस यात्रा का दूसरा महत्वपूर्ण पड़ाव चीन की निरंकुशता पर नकेल डालने के लिये बने संगठन क्वॉड की पहली शिखर बैठक होगी, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन तथा जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा से हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर साझा दृष्टिकोण के आधार पर भविष्य पर उठाये जाने वाले कदमों पर चर्चा होगी।

साथ ही द्विपक्षीय संबंधों पर भी मंथन होगा। निस्संदेह यह सम्मेलन ग्लोबल पार्टनरशिप को नये आयाम देगा तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आवाजाही को आसान बनाने पर पहल होगी। इस क्षेत्र में चारों देशों के साथ आने से चीन की दादागिरी और विस्तारवादी नीतियों पर नकेल लग सकेगी।

वहीं, दूसरी ओर क्वॉड की मीटिंग में नई तकनीक, साइबर सिक्योरिटी, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता तथा आपदा प्रबंधन व जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहमति बनने की उम्मीद है। निस्संदेह यह मौका अमेरिका के अलावा जापान व आस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाने तथा वैश्विक मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने की दिशा में भी सहायक होगा। साथ ही मार्च में हुए क्वॉड के वर्चुअल सम्मेलन के निष्कर्षों पर भी मंथन होगा।

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