साहसिक सुधार

मोदी सरकार का उद्घोष रहा है कि सरकार को खुद कारोबार नहीं करना चाहिए। लगता है कि सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों के विमुद्रीकरण के जरिये सरकार उसी दिशा में बढ़ गई है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि विश्वव्यापी कोरोना संकट से देश की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची है। सरकार की जिम्मेदारी बढ़ी है तो आय के स्रोतों का संकुचन हुआ है।

ऐसे में नेशनल मोनोटाइजेशन पाइपलाइन योजना का क्रियान्वयन देश की आर्थिकी को गति देने वाला साबित हो सकता है। दरअसल, एनएमपी योजना में आधारभूत संरचना के विमुद्रीकरण के जरिये सरकार ने आने वाले चार सालों में छह लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। वैसे तो वित्त मंत्री ने आम बजट में इस योजना का जिक्र किया था, लेकिन उसकी रूपरेखा का खुलासा अब जाकर किया है।

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने आधारभूत संरचना के प्रमुख क्षेत्रों सड़क, रेलवे, बिजली, तेल व गैस पाइपलाइन व दूरसंचार आदि क्षेत्र निजी कंपनियों के लिये खोले हैं। सरकार कह रही है कि इन संपत्तियों का विमुद्रीकरण तो किया जा रहा है, लेकिन संपत्ति पर स्वामित्व सरकार का बना रहेगा।

जाहिरा तौर पर यह राष्ट्रीय संपत्ति है, इसकी सुरक्षा को लेकर सरकार को आम जनता को भरोसा देना होगा। दरअसल, कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दल सरकारी संपत्ति को बेचने के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में सरकार को इस योजना से जुड़ी हर आशंका को दूर करना चाहिए।

इसमें दो राय नहीं कि नरसिम्हा राव सरकार के बाद देश में निजीकरण की जो बयार चली, उसमें दूसरी सरकारों ने भी अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया। लेकिन निजीकरण के अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं किये जा सके। वहीं दूसरी ओर उत्पादकता व आर्थिकी के लिहाज से देश के अधिकांश सार्वजनिक उपक्रम वक्त की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। ऐसे में सरकार को सरकारी संपत्ति की विमुद्रीकरण योजना में निवेशकों को आकर्षित करने के लिये कारगर कदम उठाने होंगे।

इसमें दो राय नहीं कि राष्ट्रीय विमुद्रीकरण पाइपलाइन एक महत्वाकांक्षी योजना है। इन संपत्तियों में सरकारी निवेश के बावजूद अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं हुए हैं। सरकार की योजना है कि निजी क्षेत्र के प्रबंधन से इन सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार आयेगा और सरकार की जवाबदेही कम होगी। लेकिन सरकार को इस दिशा में पूरी पारदर्शिता स्थापित करके देश की जनता को विश्वास में लेना होगा कि निजी क्षेत्र को निरंकुश व्यवहार की इजाजत नहीं दी जाएगी।

इन संपत्तियों को कंपनियों द्वारा कालांतर सार्वजनिक प्राधिकरण को स्थानांतरित करना होगा। ऐसा भी न हो कि निजी कंपनियों की मनमानी से सेवा का मूल्य इतना अधिक कर दिया जाये कि आम लोगों की दुश्वारियां असहनीय हो जायें। दरअसल, रेलवे व अन्य सेवाओं का उपयोग समाज का अंतिम व्यक्ति जीवन निर्वाह के लिये करता है।

ऐसे में नियामक संस्थाओं को कंपनियों के मनमाने व्यवहार पर नजर रखनी होगी। एनएमपी दस्तावेज के अनुसार 1.6 लाख करोड़ रुपये राष्ट्रीय राजमार्गों व नयी सड़कों के विमुद्रीकरण से आने की उम्मीद है। लेकिन साथ ही निजी कंपनियों के सुचारु संचालन के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करना केंद्र व राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। बीते कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन के कारण हरियाणा-पंजाब के तमाम टोल प्लाजा बंद करने पड़े हैं, जिससे प्रतिदिन पांच करोड़ का नुकसान हो रहा है।

इस तरह के व्यवधान निवेशकों का उत्साह कम करेंगे। इसी तरह मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और बेंगलुरु के हवाई अड्डों के विमुद्रीकरण से लाभ के लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। वहीं बिजली क्षेत्र की विसंगतियों पर भी ध्यान दिया जाये। पंजाब में निजी बिजली कंपनियों को प्रबंधन सौंपे जाने के सकारात्मक परिणाम नहीं मिले हैं।

यहां बिजली की दरों में कमी और बेहतर आपूर्ति के लक्ष्य पूरे नहीं हुए। सरकार को सार्वजनिक संपत्ति की विमुद्रीकरण नीति के क्रियान्वयन में कुशल व प्रभावी नीति का पालन करना होगा। तभी सरकार योजना के वास्तविक लाभ हासिल कर पायेगी। आम जनता में यह विश्वास कायम रहना चाहिए कि निर्धारित समय के बाद संपत्तियां सरकार के पास लौटेंगी और राष्ट्रीय संपत्ति का दुरुपयोग नहीं होगा। 

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