राशन

कोविड संकट के दौरान सख्त लॉकडाउन के बाद देशव्यापी श्रमिक पलायन ने हर संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित किया है। तंत्र की नाकामी से बड़ी संख्या में श्रमिकों को असुरक्षा बोध के चलते अपने गांवों को पलायन करना पड़ा। इन विषम परिस्थितियों में देश की शीर्ष अदालत ने कई मामलों में स्वत: संज्ञान लेते हुए मार्गदर्शक निर्देश दिये और सरकारों के प्रति सख्त रवैया दिखाया।

इसी क्रम में प्रवासी श्रमिकों की दशा सुधारने के लिये दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए सभी राज्यों को 31 जुलाई 2021 तक ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना को मूर्त रूप देने के निर्देश दिये। इस दौरान प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन वितरित करने की योजना लाने को भी राज्य सरकारों से कहा। साथ ही निर्देश दिये कि जब तक महामारी खत्म नहीं हो जाती तब तक सामुदायिक रसोई चलाने की व्यवस्था करें।

अदालत ने सभी असंगठित क्षेत्रों के तथा प्रवासी मजदूरों का पंजीकरण करने को भी कहा है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकारें सभी ठेकदारों को पंजीकृत करके श्रमिकों का पंजीकरण 31 जुलाई तक पूरा कर लें। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार पर सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा कि श्रम व रोजगार मंत्रालय असंगठित कामगारों के आंकड़े तैयार करने में जैसा लापरवाहीभरा रवैया अपना रहा है, वह माफी योग्य नहीं है।

असंगठित श्रमिक व प्रवासी श्रमिकों की जानकारी एकत्र करने वाले पोर्टल को तैयार करने में हो रही देरी बताती है कि वे प्रवासी श्रमिकों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों की दशा सुधारने के लिये शीर्ष अदालत समय-समय पर केंद्र व राज्य सरकारों को चेताती रही है। गत 24 मई की सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने केंद्र के रवैये पर नाराजगी जाहिर की थी तथा श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया की मौजूदा स्थिति से अवगत कराने को कहा था।

वहीं दूसरी ओर न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की पीठ ने स्पष्ट किया है कि पीठ किसी राहत पैकेज के तौर पर रुपये देने का आदेश नहीं देगी क्योंकि यह नीतिगत निर्णय है। लेकिन सरकारों को श्रमिकों को मुश्किल वक्त में राहत देने हेतु ठोस पहल करनी चाहिए। सरकार पंजीकरण के काम में तेजी लाये। श्रमिकों को पंजीकरण के लिये प्रेरित किया जाये।

सरकार को भी श्रमिकों से संपर्क करने का प्रयास करना चाहिए। निस्संदेह सरकार की तमाम श्रमिक कल्याण योजनाएं तब तक निरर्थक हैं जब तक कि पात्र व्यक्तियों का ठोस विवरण मौजूद न हों। यह भी कि सरकारों की कल्याण योजनाओं का लाभ कहीं ठेकदार व चतुर-चालाक लोग तो नहीं डकार रहे हैं।

देश की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लागू होने से जो फर्जी घोटाले उजागर हुए हैं, वैसी ही स्थिति श्रमिकों के मामले में भी सामने आ सकती है। निस्संदेह यह एक कठिन व जटिल प्रक्रिया है लेकिन इस दिशा में ईमानदार पहल तो होनी ही चाहिए। सही मायनो में पंजीकरण की प्रक्रिया सिरे चढ़ने से सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में संसाधनों का जो रिसाव होता रहा है, उस पर भी ठोस डाटा सामने आने से रोक लग सकेगी।

अजीब बात है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम अपनी श्रमशील आबादी की ठोस जानकारी नहीं जुटा पाये। वैसे भी अदालत जो अभिभावक की भूमिका निभा रही है, वह काम तो सरकारों का था, जिनकी अकर्मण्यता के चलते बार-बार कोर्ट को सरकार के कान उमेठने पड़ते हैं। कोर्ट को सरकारों से पूछना पड़ा था कि जो प्रवासी श्रमिक अपने गांव पहुंचे हैं, उनकी आय अर्जन का जरिया क्या है। साथ ही उन योजनाओं का विवरण देने को भी कहा था, जिनका लाभ प्रवासी श्रमिक उठा सकते हैं।

हकीकत तो यह है कि सरकारें यदि संवेदनशील होती और श्रमिकों में भरोसा जगा पाती तो देश विभाजन के बाद के सबसे बड़े पलायन के दृश्य न उभरते। सुप्रीम कोर्ट की पहल के बाद ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ योजना के सिरे चढ़ने के बाद कम से कम भविष्य में प्रवासी श्रमिकों की ऐसी भगदड़ देखने को तो नहीं मिलेगी।

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