तपिश
अयोध्या के निकट गाना नामक ग्राम में दिसम्बर 1871 को एक रईस ब्राह्मण के घर एक दिव्य बालक राजा राम का जन्म हुआ। बचपन में ही बालक राजा राम के मन में संसार की क्षणभंगुरता का भाव उदय हो गया था।
नौ वर्ष की अल्पायु में ही बालक ने घर परिवार की तमाम बंदिशें तोड़ आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए सद्गुरु की खोज में घर छोड़ने का फ़ैसला कर लिया। उत्तराखण्ड की दुर्गम ऊंची पर्वत शृंखलाओं में सद्गुरु की खोज में भटकता बालक एक दंडी स्वामी महात्मा के आश्रम पहुंचा। स्वामी जी से बालक ने कहा- कुछ अग्नि की आवश्यकता है।
यह सुनते ही दंडी स्वामी गुस्से में बोले-जानते नहीं, दंडी स्वामी के पास अग्नि कहां? बालक ने पूछा-अग्नि रही नहीं, तो जली कहां से? एक बालक के मुख से यह गूढ़ वाक्य सुनते ही उनका सारा क्रोध काफूर हो गया।
उन्होंने उस बालक को अपना शिष्य बनाना चाहा। बालक ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मैं तो आपकी क्रोध अग्नि की प्रथम ज्वाला से ही डर गया हूं। आगे चलकर लंबी कठिन तपश्चर्या के बाद यह बालक ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज हुए।