बकस्वाहा को बचाने की मुहिम और तेज

बांदा,संवाददाता। बुंदेलखंड के बकस्वाहा जंगल को हीरा खदान में तब्दील करने से बचाने का नारा अब मध्य प्रदेश के महामहिम तक पहुंचेगा। पर्यावरण पैरोकारों के संगठन 27 जून को राजभवन पर प्रदर्शन करेंगे।

उधर, 30 जून को एनजीटी इस पर फिर सुनवाई करेगी। हीरा खदान कंपनी भी अपनी सफाई पेश करेगी। बुंदेलखंड के सीमावर्ती छतरपुर जिले में बकस्वाहा जंगल को हीरा खनन के लिए बिड़ला ग्रुप की एक्सल माइनिंग इंड्रस्ट्रीज कंपनी को 50 साल के पट्टे पर एमपी सरकार ने दे दिया है। इसका रकबा लगभग 382.13 हेक्टेयर है।

जंगल के लगभग 2.15 लाख हरे-भरे पेड़-पौधे काटे जाएंगे। इतनी बड़ी हरियाली पर मंडराते खतरे से पर्यावरण प्रेमी और उनके संगठनों ने आंदोलन छेड़ दिया है। बकस्वाहा जंगल में कई प्रदर्शन हो चुके हैं। वेबिनार के जरिये देश भर के पर्यावरण प्रेमी विरोध जता रहे हैं।

27 जून को भोपाल स्थित राजभवन और अन्य जनपदों में जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए सक्रिय संगठन प्रदर्शन करेंगे। हीरा खदान को दी गई अनुमति को निरस्त करने की मांग करेंगे। पर्यावरण पैरोकारों का दावा है कि इस प्रदर्शन के लिए लगभग सौ संगठन अपनी सहमति जता चुके हैं।

शायद पहली बार मध्य प्रदेश के महामहिम राज्यपाल की ड्योढ़ी पर यह मुद्दा गूंजेगा। बकस्वाहा बचाओ आंदोलन को और धार देने के लिए तदर्थ समिति 26 जून को भोपाल में बैठक करेगी।

इस बैठक में मेघा पाटकर, डॉ. सुनीलम, अनिल श्रीवास्तव और बादल सरोज के भी शामिल होने की संभावना है। समिति राहुल भाई जी (सागर), पुष्पराज (गुना) और सचिन श्रीवास्तव (भोपाल) संगठनों और लोगों से लिखित अनुमति जुटा रहे हैं।

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