मनरेगा में ब्रेक, 52 फीसदी मजदूरों को मिला काम
बांदा,संवाददाता। कोविड-19 महामारी के बीच मनरेगा योजना उलझकर रह गई है। न मजदूरों के हाथ में काम है और न ही कोई अन्य रोजगार का साधन। चालू वित्तीय वर्ष के तीन माह में महज 52 फीसदी ही मजदूरों को मनरेगा के तहत काम मिल सका।
ऐसे में प्रवासी मजदूरों ने अनलॉक हो चुके महानगरों की तरफ एक बार फिर पलायन शुरू कर दिया है। जनपद में जॉब कार्ड धारक मजदूरों की संख्या 2.10 लाख है। इनमें क्रियाशील मजदूर की संख्या 1.52 लाख है।
चालू वित्तीय वर्ष में कोविड-19 व पंचायत चुनाव के कारण गांवों में मनरेगा धड़ाम रही। ज्यादातर कच्चे और पक्के काम बंद रहे हैँ। परिणाम स्वरूप तीन माह में 32 फीसदी मजदूरों को काम मिला। शेष 48 फीसदी मजदूर काम न मिलने से घर में बैठे रहे।
इन मजदूरों ने कोरोना संक्रमण के कम होते ही महानगरों का रुख करना शुरू कर दिया है। पलायन कर रहे मजदूरों को मौजूदा नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान भी नहीं रोक पा रहे हैं। उनका कहना है कि दिसंबर माह में ग्राम पंचायत के भंग होने के बाद प्रशासकों ने ग्राम समिति में मौजूद बजट को ठिकाने लगा दिया है।
ग्राम समिति के खाते में धेला नहीं बचा है। उधर, वित्तीय अधिकार भी नहीं मिले हैं। बजट और अधिकार हासिल होने के बाद वह मजदूरों को काम उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे।