जोड़ने का वक्त

ऐसे वक्त में जब देश आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने की ओर कदम रख रहा है, भारत के स्वतंत्रता सेनानियों का पुण्य स्मरण हर भारतीय का फर्ज बनता है। वे तमाम आंदोलन व घटनाएं याद की जानी चाहिए, जिनके चलते आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। देश की आजादी की लड़ाई में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत छोड़ो आंदोलन ऐसा निर्णायक मोड़ था, जिसने अंग्रेजों को अहसास कराया कि अब भारतीयों को गुलाम बनाकर रखना असंभव है।

यही वजह है कि आठ अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के तुरंत बाद सभी राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद यह आंदोलन डेढ़ साल तक चला, जिसने ब्रिटिश सत्ता की चूलें हिला कर रख दी। सही मायनों में सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन पूरे देश में करो या मरो की तर्ज पर चला।

इसका आह्वान अहिंसक आंदोलन के रूप में हुआ था, लेकिन सारे नेताओं को गिरफ्तार कर लेने के बाद आंदोलन हिंसक भी हुआ, जिसमें उन प्रतीकों व संस्थानों को निशाना बनाया गया जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पर्याय थे। सही मायनों में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन में घोषित भारत छोड़ो आंदोलन, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन पर दबाव बनाकर भारत को आजाद करने के लिये बाध्य करने के मकसद से शुरू किया गया था। ब्रिटेन को तब विश्व युद्ध के लिये हर हाल में भारतीय सहयोग की जरूरत थी।

बहरहाल, भारत छोड़ो आंदोलन ने जहां ब्रिटिश साम्राज्यवाद की नींव हिला दी थी, वहीं भारत को एकता के सूत्र में पिरो दिया था। फिरंगियों को अहसास हो गया था कि ज्यादा समय तक भारतीयों पर शासन नहीं किया जा सकता। एक राष्ट्र के रूप में एकता का स्वरूप इस आंदोलन के दौरान बुलंद हुआ। सही मायनों में देश के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास हुआ।

उत्तर प्रदेश के बलिया, महाराष्ट्र के सतारा और बंगाल के मिदनापुर में बाकायदा स्थानीय सरकारें स्थापित कर ली गईं। कई स्थानों पर स्थानीय प्रशासन पर कब्जा करके गिरफ्तार कांग्रेसी नेताओं तक को रिहा कर दिया गया। सही मायनों में इस आंदोलन के गहरे निहितार्थ थे, जिसने भारतवासियों को सिखाया कि लोकतांत्रिक ढंग से चलने वाले अहिंसक आंदोलनों के जरिये भी बड़े लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं।

यह भी कि बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अनुशासित जनसामान्य किसी आंदोलन को तार्किक परिणति देने में सक्षम है। मौजूदा वक्त में इस आंदोलन की सफलता के निहितार्थ यही हैं कि समकालीन चुनौतियों का मुकाबला सहभागिता, जागरूकता व एकता के साथ किया जा सकता है। आज भले ही हमने राजनीतिक आजादी हासिल कर ली हो, लेकिन आर्थिक व सामाजिक समानता के लक्ष्य अभी अधूरे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के मुद्दे ज्वलंत विषय हैं, जिनके लक्ष्य हासिल करने के लिये सरकारों के साथ सामाजिक स्तर पर बड़ी मुहिम की जरूरत है। ऐसे ही अन्य चुनौतियों के मुकाबले को देश को एकता के सूत्र में पिरोने की जरूरत है।

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