जख्मों पर मरहम
लंबे समय से उम्मीद थी कि सरकार दूसरी कोरोना लहर से उपजे संकट से उबरने के लिये आर्थिक राहत पैकेज देगी, सरकार ने इसी दिशा में कुछ कदम उठाये हैं। सोमवार को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कई राहत उपायों की घोषणा की, जिसमें मझोले उद्योगों के लिये क्रेडिट गारंटी योजना भी शामिल है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि महामारी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में यह पहल कुछ मददगार साबित होगी। इसके साथ ही स्वास्थ्य क्षेत्र व बुनियादी ढांचे की स्थिति सुधारने के लिये सरकार ने 1.1 लाख करोड़ रुपये की क्रेडिट गारंटी योजना का भी ऐलान किया। इसी क्रम में नकदी संकट का सामना कर रहे मध्यम स्तर के उद्योगों के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना यानी ईसीएलजीएस के तहत दिये जाने वाली राशि को पचास फीसदी बढ़ाकर 4.5 लाख करोड़ कर दिया गया।
सरकार ने जिन आठ राहत उपायों की घोषणा की है उनमें पिछले साल घोषित कई राहत उपायों का विस्तार भी शामिल है। स्वास्थ्य क्षेत्र को दिये गये पैकेज में लोन गारंटी दी गई है, जिसके लिये पचास हजार करोड़ की राशि निर्धारित की गई है। चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के लिये सौ करोड़ तक ऋण कम ब्याज दर पर दिया जा सकेगा। राहत पैकेज के तहत छोटे कारोबारी माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूट से सवा लाख तक लोन ले सकेंगे।
सरकार की मंशा नये ऋणों को प्रोत्साहन देना और इसकी प्रक्रिया को सरल बनाना है ताकि छोटे कारोबारियों को नकदी संकट से उबारा जा सके। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना संकट में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र में पर्यटन उद्योग शामिल है। पर्यटन उद्योग को उबारने के क्रम में पंजीकृत टूरिस्ट गाइडों व ट्रैवल टूरिज्म स्टेकहोल्डर्स को सरकार वित्तीय मदद देगी।
इसके तहत टूरिस्ट गाइड को एक लाख व टूरिस्ट एजेंसी को दस लाख रुपये का लोन दिया जायेगा। इस ऋण की सौ फीसदी गारंटी दी जायेगी। लोन पर कोई प्रोसेसिंग शुल्क नहीं लगेगा। इसके साथ ही महामारी से बिखर चुके पर्यटन उद्योग को उबारने के लिये सरकार पांच लाख मुफ्त विदेशी टूरिस्ट वीजा जारी करेगी। आगामी 31 मार्च, 2022 तक चलने वाली इस योजना के लिये सरकार सौ करोड़ की वित्तीय सहायता देगी।
सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम कोरोना संकट के दौरान रोजगार खोने वाले पंद्रह हजार से कम वेतन वाले कर्मचारियों को राहत देने के लिये उठाया है। यह प्रयास पहली लहर के बाद लॉकडाउन से उपजे रोजगार संकट को कुछ कम करने के लिये भी किया गया था।
आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के तहत पंद्रह हजार से कम वेतन पाने वाले लाखों कर्मचारियों व नियोक्ता के हिस्से का बारह-बारह प्रतिशत पीएफ का भुगतान सरकार करती है ताकि रोजगार संकट के चलते कंपनियां छंटनी न करें और कर्मचारी को भी कुछ बचत हो सके। इस योजना का मकसद नये रोजगार का सृजन करना भी था ताकि जिनकी नौकरी चली गई है उन्हें फिर से रोजगार मिल सके। पहले यह योजना जून, 2021 तक थी, अब इसे बढ़ाकर अगले साल 31 मार्च तक किया गया है।
सरकार का दावा है कि पिछली लहर के बाद उपजे संकट में इस योजना के तहत 21.42 लाभार्थियों पर 902 करोड़ खर्च किये गये थे। इस बार इस योजना पर 22,810 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है। वहीं किसानों हेतु खादों की खरीद पर दी जाने वाली सब्सिडी का विस्तार किया गया है। पैकेज में किसानों को राहत के अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के विस्तार का भी जिक्र किया गया है।
निस्संदेह, सरकार की पहल वक्त की जरूरत है लेकिन बेहतर होता कि कोरोना संकट से प्रभावित रोज कमाकर खाने वाले तबके को सीधी आर्थिक मदद मिलती। सीधे हाथ में नकदी पहुंचने से जहां महंगाई की मार से कुछ राहत मिलती, वहीं आर्थिक तरलता बढ़ने से बाजार में उछाल आता, जिससे पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को दुुरुस्त करने में मदद मिलती। सवाल यह भी है कि पहले ही ऋणों से दबे वर्गों को और ऋण उपलब्ध कराने से क्या वाकई राहत मिल पायेगी?