आपस में न लड़ें

पूर्वोत्तर राज्य असम और मेघालय के बीच हुई हिंसक झड़प में छह लोगों की मौत का कारक बेशक लकड़ी तस्करी से उपजे विवाद को बताया जा रहा हो, पर इसके मूल में बीते पांच दशकों से दोनों राज्यों के बीच जारी सीमा विवाद ही है। ऐसा नहीं होता, तो असम सरकार इस मामले में आनन-फानन कार्रवाई करते हुए वन विभाग के अधिकारियों को निलंबित कर सीबीआई जांच की हामी नहीं भरती।

अभी इसी साल असम और मेघालय सरकार ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 12 विवादित इलाकों में से छह के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। मगर उन इलाकों में रहने वाले लोगों को यह समझौता मंजूर नहीं। ताजा हिंसा की जड़ें भी इसी मतभेद में छिपी हैं। 


वैसे तो ‘सेवेन सिस्टर्स’ कहलाने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों का सीमा विवाद बहुत पुराना है, लेकिन हाल में इस वजह से उनके बीच हिंसक झड़पें तेजी से बढ़ी हैं। इसकी वजहों को समझने के लिए अतीत में झांकना जरूरी है। दरअसल, जब असम से काटकर मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों का गठन किया गया था, तब इलाके में आबादी बहुत कम थी और सीमावर्ती इलाके घने जंगलों से घिरे थे।

मगर आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से लोगों की जरूरतों के हिसाब से जब जगह कम पड़ने लगी, तो जमीन का मुद्दा उठने लगा। इसे शुरुआती दौर में ही सुलझाया जा सकता था, लेकिन केंद्र व राज्य सरकारें इस ओर से आंखें मूंदे रहीं। इसी विवाद के चलते बीते साल मिजोरम पुलिस के हाथों असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी।

प्रशासनिक सहूलियत के लिए असम से काटकर नए राज्यों के गठन का सिलसिला वर्ष 1962 के बाद  शुरू हुआ था, पर तब सीमाओं का सही तरीके से निर्धारण नहीं किया गया था। असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी। इन दोनों राज्यों की सीमा 804.1 किलोमीटर लंबी है।

कबीलाई मानसिकता से प्रभावित दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अतिक्रमण व हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं। पहले जिस इलाके को असम के लुसाई हिल्स जिले के नाम से जाना जाता था, उसे 1972 में पहले केंद्रशासित क्षेत्र और फिर 1987 में पूर्ण राज्य मिजोरम का दर्जा दिया गया। दक्षिण असम के साथ मिजोरम की करीब 165 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है। मिजोरम का दावा है कि उसके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर असम का अवैध कब्जा है। 


वर्ष 1993 में असम व मणिपुर सरकार ने लुसाई हिल्स और मणिपुर राज्य के बीच के इलाकों की सीमा का निर्धारण कर दिया था, लेकिन मिजोरम की दलील है कि यह सीमांकन वर्ष 1875 की अधिसूचना पर आधारित होना चाहिए। नेताओं का कहना है कि 1933 में मिजो समुदाय से सलाह नहीं ली गई थी, इसलिए इस अधिसूचना के तहत निर्धारित सीमा वैध नहीं है। उधर, असम सरकार 1933 की अधिसूचना के आधार पर ही सीमाएं तय करने के पक्ष में है।

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