सरगनाओं का खात्मा

अल कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी को मार गिराने से अमेरिका के आतंकवाद-विरोधी अभियान को नई ऊर्जा मिली है। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के दो मुख्य सूत्रधारों में एक जवाहिरी भी था।

एक अन्य आतंकी ओसामा बिन लादेन को 2011 में पाकिस्तान के अबोटाबाद में मार गिराया गया था। इस लिहाज से देखें, तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का यह बयान स्वाभाविक है कि न्याय की जीत हुई। जिस मकसद से अमेरिकी फौज 2001 में अफगानिस्तान की ओर निकली थी, दोनों आतंकियों की मौत के बाद वह अभियान पूरा हो गया है।

जवाहिरी सिर्फ अल कायदा का सरगना नहीं था, वह इस आतंकी संगठन के संस्थापकों में से एक था। हालांकि, यह नहीं कह सकते कि उसकी मौत के बाद अल कायदा की कमर टूट गई है। ऐसे संगठन वैचारिक आधार पर टिके होते हैं।

इनके सरगना को जरूर खत्म किया जा सकता है, लेकिन जल्द ही कोई नया नेतृत्व भी उभर आता है। हां, चूंकि अल कायदा के दोनों बड़े नेताओं को अब मार गिराया गया है, इसलिए फिलहाल कहा जा सकता है कि नए प्रमुख के उभरने और इन दोनों की तरह प्रभावशाली बनने में उसे वक्त लगेगा।


संयुक्त राष्ट्र में बताया गया है कि अल कायदा के तीन से चार हजार लड़ाके हैं, लेकिन इनकी ज्यादातर संख्या अफगानिस्तान में ही होगी। इसलिए चिंता उन गुटों से ज्यादा है, जो इसके समर्थक हैं। पूर्वी अफ्रीका में अल-शबाब या पश्चिमी अफ्रीका में सक्रिय जेहादी संगठनों की तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

अच्छी बात यह है कि पहले अल कायदा के दो मुख्य समर्थक गुट हुआ करते थे, जो खासा बड़े भी थे, जिनमें पहला था, यमन में सक्रिय एक्यूएपी, यानी अल कायदा इन अरेबियन पेनिन्सुला, जिसके नेता को 2016 के ड्रोन हमले में मार गिराया गया था।

और दूसरा गुट था, अल कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनंट, यानी एक्यूआईएस। इसके नेता को भी 2019 में मार गिराया गया था। जाहिर है, चार बडे़ नेताओं में सिर्फ जवाहिरी अब तक जीवित था, जिसकी मौत के साथ अल कायदा के शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया है।

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