3 बहनें संवार रही सैंकड़ों बेटियों की किस्मत, समाज के खिलाफ जाकर पिता ने दिखाई थी राह

बाड़मेर. भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे सरहदी बाड़मेर जिले में पीढ़ियों से अल्पसंख्यक बेटियां तालीम (Education) से महरूम रही है. इसका मलाल लिए एक पिता ने अपनी 3 बेटियों को पड़ोसी सूबे गुजरात में तालीम दिलाई. इसके लिए न केवल पिता अब्दुल रऊफ को बल्कि तीनों बहनों को भी न जाने कितने ताने सुनने पड़े. लेकिन 3 बहनों की मेहनत एवं लगन (Hard work and dedication) का ही नतीजा है कि आज बाड़मेर में जोधपुर, पाली और जालोर सहित गुजरात की करीब 150 बेटियां दिनी एवं दुनियावही तालीम हासिल कर रही हैं.

पाकिस्तान की सीमा पर बसा बाड़मेर जिला वह इलाका है जहां अल्पसंख्यक समुदाय की बेटियों की तालीम पर पूरी तरह से पाबंदी थी. कोई अगर उनकी तालीम की बात भी करता था तो पूरा समाज उसकी सोच पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देता था. उसी माहौल में एक पिता ने ना केवल अपनी बेटियों को पढ़ाया बल्कि उन्होंने अपनी बेटियों को आने वाले कल के लिए कुछ गुजरने की हिम्मत दी. तालीम लेने के बाद वही बेटियां आज सैकड़ों बालिकाओं में नई जिंदगी की शमां जला रही हैं.

कबीर, रहीम, रैदास और तुलसीदास के दोहों तथा चौपाइयां पढ़ रही हैं

भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे बाड़मेर जिले के गुड़ामालानी उपखण्ड क्षेत्र के नगर गांव के मदरसा हनीफिया बालिका शिक्षण संस्थान में तीन बहनें तालीम की अलख जगाए हुए है. यहां ये सैंकड़ों बेटियां कबीर, रहीम, रैदास और तुलसीदास के दोहों तथा चौपाइयों को पढ़ रही हैं. यहां के अब्दुल रऊफ ने अपनी बेटी जैनब को ना केवल तालीम दिलाई बल्कि उसे दूसरी बेटियों के सपनों को पंख देने के हिम्मत भी दी. उसके साथ-साथ उसकी बहन फातमा और जैनब को भी पढ़ाकर कामयाब बनाया. इसके बाद अपनी ढाणी में पैतृक जमीन में से 7 बीघा जमीन को दान कर साल 2012 में तालीम का दर बनाकर मदरसा हनीफिया बालिका शिक्षण संस्थान की स्थापना की.

करीबन 150 बेटियां दिनी एवं दुनियावही तालीम हासिल कर रही हैं

3 बहनें शिक्षा की अलख जगाने के लिए जी जान से जुट गईं और आज नतीजा यह है कि यहां ना केवल बाड़मेर बल्कि जोधपुर,पाली और जालोर सहित गुजरात की करीबन 150 बेटियां दिनी एवं दुनियावही तालीम हासिल कर रही हैं. यहां तालीम लेने आई अनिसा बानो बताती है कि वह पिछले 7 साल से यही तालीम ले रही है. उर्दू के साथ साथ दुनियावही तालीम दी जाती है. नगीना बानो बताती है कि वह 4 साल से यहां पढ़ाई कर रही है. यहां एक मां की तरह ख्याल रखा जाता है. सफुरा बानो बताती है कि यहां दीनी व दुनियावही तालीम दी जाती है. 3 बहनों जुबैदा, फातिमा व जैनब बाहर से तालिम लेकर आई और यहां मदरसा खोल दिया.

दुनियावही शिक्षा एवं हुनर सीख रही बच्चियां

यहां की छात्रायें दीनी शिक्षा के साथ साथ दुनियावही शिक्षा एवं हुनर सीख रही है. इस मदरसा की बेहतरीन गतिविधियों की तारीफ हर कोई कर रहा है. इन बेटियों के जज्बे को देख कर राजस्थान के अल्पसंख्यक मामलात मंत्री शाले मोहम्मद ने मुख्यमंत्री मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत 15 लाख रुपये का बजट देकर मदरसा में आधारभूत संरचनाओं के विकास में मदद भी की है. जैनब ने अल्पसंख्यक बेटियों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जी जान से बीड़ा उठा रखा है. उसी का नतीजा है कि आज यहां पढ़ रही बेटियां खुद को ना केवल आत्मनिर्भर बनाने की बात कहती नजर आती है बल्कि उनका जोश और जुनून देखने लायक है.

शुरुआत का दौर बहुत मुश्किल भरा था

जुबेदा बानो बताती है कि साल 2012 मे मदरसा शुरू हुआ था. दिनी व दुनियावही तालीम दी जाती है. शुरुआत मे बहुत कठिनाई हुई लेकिन आज यहां सैंकड़ों बच्चियां तालीम ले रही हैं. वहीं फातिमा बानो के मुताबिक शुरुआत का दौर बहुत मुश्किल था. लेकिन तीनों बहनों के सहयोग से कारवां आगे बढ़ रहा है. एक पिता ने अपनी बेटी को समाज की मुख्य धारा में लाने के सपने को साकार कर दिखाया है. उसी बेटी का जज्बा आज सैकड़ों बेटियों को नई दिशा और दशा प्रदान कर रहा है. आज यहां सैकड़ों बेटियां जिंदगी की नई रोशनी से ना केवल रू-ब-रू हो रही हैं. बल्कि वह अपने आने वाले कल को सुरक्षित और स्वर्णिम करती नजर आ रही हैं.

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