तनातनी की सियासत 

पिछले कुछ दिनों से आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। वास्तव में, आपसी तकरार का यह तीसरा दौर है। इसका पहला चरण 2012 में आप के जन्म के साथ ही शुरू हो गया था। यह दौर 2015-16 तक चला, जिसमें विरोधी पार्टी के नेताओं को लगातार निशाने पर लिया जाता रहा। खुद अरविंद केजरीवाल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी (भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार) के खिलाफ वाराणसी गए थे। आपसी टकराव का दूसरा दौर 2017 में शुरू हुआ, जब दिल्ली में स्थानीय निकाय के चुनाव हुए। इसमें हार के बाद आप का रुख थोड़ा नरम हुआ और उसके नेता सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को निशाने पर लेने से बचने लगे। यह दौर कमोबेश 2020 तक चला। दो साल पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव के समय तकरार फिर से बढ़ने लगी, जिसने इस साल पंजाब में आप की जीत के बाद नया रूप ले लिया है। अब आप खुद को राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के तौर पर पेश करने लगी है।

दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री पर सीबीआई की दबिश को भी जनता के बीच या राजनीतिक गलियारे में दो पार्टियों के बीच की तकरार ही माना जा रहा है। हालांकि, अभी कथित शराब घोटाले की गुत्थियां सुलझनी बाकी हैं। वैसे, इन हालात में आप स्वाभाविक ही अपने लिए मौके तलाश रही होगी, खासकर यह देखते हुए कि कांग्रेस पार्टी का आधार लगातार सिमटता जा रहा है। चंद महीनों के भीतर ही हिमाचल और गुजरात के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं और आप दोनों जगह पूरा जोर लगा रही है। लेकिन क्या वाकई वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बन गई है? 

इसमें दोराय नहीं कि आप अभी उभार पर है। पंजाब विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उसे राष्ट्रीय मीडिया में लगातार जगह मिल रही है। मतदाताओं में इस पार्टी और अरविंद केजरीवाल को लेकर उत्सुकता बढ़ रही है। एक सर्वे के मुताबिक, साल 2019 में जहां राष्ट्रीय स्तर पर इसका वोट शेयर एक से दो फीसदी था, वह अब बढ़कर सात से आठ फीसदी तक पहुंचता दिख रहा है। मगर अभी वह राष्ट्रीय राजनीति में मुख्य विपक्षी पार्टी शायद ही बन सकेगी। दिल्ली व पंजाब में बेशक उसका आधार मजबूत हो चुका है, पर अन्य राज्यों में उसे अभी जमीन की तलाश है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और गोवा के हालिया विधानसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। उत्तर प्रदेश में तो 300 से भी ज्यादा सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी।
आप की यह महत्वाकांक्षा विपक्षी एकता पर भी भारी पड़ रही है। भले ही विपक्षी पार्टियों का मकसद भाजपा को हराना है, पर विशेषकर आप और तृणमूल कांगे्रस खुद को बड़े दल के रूप में पेश करना चाहती हैं। उनमें होड़ सी मची है कि राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विपक्षी पार्टी कौन? चूंकि संसाधन जुटाने के लिए खुद को बडे़ दल के रूप में पेश करना जरूरी है, इसलिए आम आदमी पार्टी हवा को अपने पक्ष में करने के लिए सीबीआई जांच को एक मौके के रूप में देख रही है। हालांकि, आप और भाजपा के बीच जितनी गहरी खाई है, कमोबेश उतना ही बड़ा फासला आप और कांग्रेस के बीच भी है। कांग्रेस की लोकप्रियता में जहां-जहां कमी आई है, आप उन-उन जगहों पर जाने को उत्सुक है, ताकि वह कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठा सके। लेकिन वह इसमें कितना सफल होगी या हिमाचल व गुजरात में वह भाजपा से आगे निकल पाएगी, इसका विश्लेषण अभी मुश्किल है। हां, वह कांग्रेस के वोट में जरूर सेंध लगा सकती है और अगर ऐसा होता नजर आया, तो 2024 में एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरने की उसकी दावेदारी मजबूत हो जाएगी। फिर भी, वह मुख्य विपक्षी पार्टी शायद ही बन सकेगी, क्योंकि पंजाब व दिल्ली में पूरी तरह से जीत हासिल करने के बाद भी लोकसभा में उसके हिस्से चंद सीटें ही आ सकती हैं।
इन सबके बावजूद इस आरोप से भी मुंह नहीं फेरा जा सकता कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग होता है। भारतीय राजनीति में काफी समय से इन संस्थाओं का सियासी इस्तेमाल होता रहा है। मगर क्या आम आदमी पार्टी के मंत्रियों के खिलाफ मौजूदा कार्रवाई इसी की कड़ी है? इसका सही-सही जवाब नहीं दिया जा सकता, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त के भाषण को सुनें, तो दो बातें निकलकर सामने आती हैं। पहली, केंद्र सरकार की प्राथमिकता है भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था। और दूसरी बात, वंशवाद पर हमला। ये दोनों भारतीय राजनीति की बड़ी समस्याएं हैं, लेकिन हो सकता है कि भाजपा इससे राजनीतिक फायदा उठाना चाह रही हो, यानी इसके बहाने वह विपक्ष को नुकसान पहुंचाने की ताक में हो। भारतीय राजनीति में सक्रिय ज्यादातर पार्टियां वंशवाद की पोषक हैं और आप की लोकप्रियता का एक आधार यही है कि वह भ्रष्टाचार को खत्म करने संबंधी आंदोलन से उपजी है। ऐसे में, अगर भाजपा आम लोगों के बीच यह धारणा बनाने में सफल हो गई कि साफ-सुथरी राजनीति का दावा करने वाली आप के बड़े नेता भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं, तो आप के पक्ष में देश भर में बन रहा माहौल नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा।

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