नए अवसर

इस साल 24 फरवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब सभी को यूं लगा कि दो-चार दिन में मामला खत्म हो जाएगा। यूक्रेन की सरकार को रूस गिरा देगा और वहां कोई नई कठपुतली सरकार बन जाएगी, जिसके बाद शांति बहाल हो जाएगी। अब चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन न तो शांति बहाल हुई है और न ही उसके आसार दिख रहे हैं।

साफ है, रूस ने जैसा समझा था, यूक्रेन उतना कमजोर शिकार साबित नहीं हुआ। बेशक डेढ़ करोड़ लोग घरबदर हो गए, हजारों इमारतें तबाह हुईं, यूक्रेन की अर्थव्यवस्था घटकर आधी रह जाने का डर पैदा हो गया है, मगर इस लड़ाई की बड़ी कीमत रूस को भी चुकानी है।

मोटा अनुमान है कि इस लड़ाई पर रूस हर रोज 90 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है, लेकिन यह खर्च उस कीमत के आगे कुछ भी नहीं है, जो रूस के भविष्य को चुकानी है। 


भारत में पुराने लोगों को याद होना चाहिए कि बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई और उसके साथ पाकिस्तान से युद्ध के बाद पोस्टकार्ड और सिनेमा टिकट ही नहीं, करीब-करीब हर चीज पर एक बांग्लादेश सरचार्ज लगाया गया था। कई साल के बाद वह सरचार्ज कीमत में ही जोड़ दिया गया। कितने साल बाद, कहना मुश्किल है।

मगर रूस के बारे में अर्थशा्त्रिरयों का अनुमान है कि यह लड़ाई देश की अर्थव्यवस्था को कम-से-कम 30 साल पीछे धकेल चुकी है। जीडीपी में इस साल ही 15 फीसदी की गिरावट का डर है और अगले पांच साल तक लोगों के रहन-सहन के स्तर में गिरावट रहेगी।

इस लड़ाई का असर सिर्फ रूस और यूक्रेन तक रहता, तो शायद उतनी बड़ी बात न होती। यह जंग तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को खतरे में डाल चुकी है। हरेक देश हिसाब लगा रहा है कि उसकी अर्थव्यवस्था को कितना झटका लगनेवाला है, और यह भी कि क्या इस आपदा में कोई अवसर तो नहीं छिपा है?

इस किस्से को समझने के लिए देखना जरूरी है कि दुनिया के बाजार में या आर्थिक मानचित्र पर रूस की या यूक्रेन की हैसियत क्या है? फिलहाल दोनों देश तेल, गैस, अनाज और दलहन-तिलहन के बड़े उत्पादक व निर्यातक हैं, जिस कारण इस लड़ाई से दुनिया भर में महंगाई भड़क गई है।

अमेरिकी अर्थशास्त्री केनेथ रोगौफ ने सवाल भी उठाया है कि इस साल के अंत तक अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाएं एक साथ सुस्ती के संकेत दे रही हैं, तो क्या दुनिया की अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में एक बवंडर में फंसने जा रही है?


ऐसी स्थिति में अब यह बात भी स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र या पश्चिमी देशों की तरफ से लगनेवाले आर्थिक प्रतिबंध लड़ाई रोकने का काम नहीं कर सकते। यहीं आपदा में अवसर है। जब रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगे, तो भारत जैसे देशों के लिए मौका पैदा हुआ कि वह रूस से सस्ता तेल खरीद लें।

हालांकि, अमेरिका लगातार दबाव बनाता रहा है कि भारत रूस से तेल एक हद तक ही खरीदे। मगर रूस के साथ भारत के बहुत पुराने सामरिक संबंध हैं। 1971 की लड़ाई में रूस का दबाव काफी काम भी आया था। और, इस वक्त भारत के पास मौका था कि वह रूस की मदद करे और नुकसान के बजाय फायदे में रहे।

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