धूमधाम से मनी महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि
हमीरपुर। वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा के अन्तर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत असाधारण शौर्य की साक्षी रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर संस्था के अध्यक्ष डा. भवानीदीन ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये कहा महारानी लक्ष्मी बाई सही मायने मा भारती की एक बेमिसाल वीरांगना थी, इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, रानी सत्तावनी समर की शेरनी थी, इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था, प्यार मे इन्हें मनु के नाम से पुकारा जाता था, इनके जन्म को लेकर वर्ष मे मतभिन्नता है, कुछ लेखक इनका 1835 तो कुछ 1828 मे जन्म मानते हैं, मनु काशी मे जन्मी तथा बिठूर मे शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था, इनके पिता मोरोपंत ताम्बे बिठूर मे बाजीराव पेशवा के यहां अपनी सेवाएं देते थे ।
इनका झासी के राजा गंगा धर राव से विवाह हुआ था, 1851 मे इनके एक पुत्र हुआ, जो कुछ ही दिनों तक जीवित रहा, राजा का 1853 में निधन हो गया, गोरों ने राज्य हडप नीति के तहत झासी को साम्राज्य मे मिला लिया, रानी ने हुकार भरते हुये कहा मै झासी नहीं दूगी, रानी ने झासी को सुरक्षित किया, चारों तरफ़ संघर्ष किया, रानी के दत्तक पुत्र दामोदर राव को गोरों ने मान्यता नहीं दी,दुल्हाजू और पीरबख्श ने रानी और झासी के साथ विश्वासघात किया, रानी की पराजय हुई, रानी ने जिस स्त्री सेना का गठन किया था, उसने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया, उनकी हमशक्ल झलकारी बाई ने रानी को झासी से निकलने मे प्रभावी मदद की, रानी ने कालपी और ग्वालियर को अपना प्रवास बनाया, देशी शासको से मदद मागी, रानी की तात्याटोपे, कुवरसिह, नाना साहब ने मदद की, राजा उदासीनता और रास.रंग मे लगे रहे। रानी और उसके वीर सेनानायकों ने अंग्रेजों को कई बार हराया
। अन्त मे रानी ग्वालियर के पास 18 जून 1858 को वीरगति को वीरगति को प्राप्त हुई। देश इन्हें हमेशा याद करेगा। कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, अशोक अवस्थी, रमेशचंद गुप्ता, दिलीप अवस्थी लखन और रमेश कुशवाहा आदि उपस्थित रहे।