सही प्रश्न पहुंचाएंगे परमात्मा तक

इससे पहले कि मैं जीवन की खोज के सम्बंध में कुछ कहूं, प्रारम्भिक रूप से यह कहना जरूरी है कि जिसे हम जीवन समझते हैं, उसे जीवन समझने का कोई भी कारण नहीं है।

और जब तक यह स्पष्ट न हो जाए, और जब तक हमारे हृदय के समक्ष यह बात सुनिश्चित न हो जाए कि हम जिसे जीवन समझ रहे हैं, वह जीवन नहीं है, तब तक सत्य जीवन की खोज भी प्रारम्भ नहीं हो सकती।

अंधकार को ही कोई प्रकाश समझ ले, तो प्रकाश की खोज नहीं होगी और मृत्यु को ही कोई जीवन समझ ले, तो जीवन से वंचित रह जाएगा।

हम क्या समझे बैठे हुए हैं, अगर वह गलत है, तो हमारे सारे जीवन का फल भी गलत ही होगा। हमारी समझ पर निर्भर करेगा कि हमारी खोज क्या होगी?

एक आदमी एक रास्ता बनाए, एक ऐसा आदमी, जिसे कहीं भी न जाना हो और वह जिंदगी भर रास्ता बनाए, रास्ता तोड़े, जंगल तोड़े, मिट्टियां बिछाए, रास्ता बनाए और आप उससे पूछें कि ये रास्ता किसलिए बना रहे हो और वह कहे मुझे कहीं जाना नहीं है, तो रास्ता बनाना व्यर्थ हो गया।

हम सब ऐसे ही रास्ते बनाते हैं, जिन्हें कहीं जाना नहीं है। जिसे परमात्मा तक नहीं जाना है, उसका जीवन एक ऐसा ही रास्ता है, जिसे वह बना रहा है, लेकिन कहीं जाएगा नहीं।

जिसके प्राण परमात्मा तक जाने को आकांक्षी हो गए हैं, उसका ये सारा क्षुद्र जीवन, ये सारा छोटा-छोटा मिट्टियों का बिछाना और मिट्टियों को रखना और जंगल को तोड़ना, रास्ते को बनाना सार्थक हो जाता है।

रास्ते हम सब बनाते हैं, पहुंचते हममें से बहुत थोड़े हैं, क्योंकि रास्ता बनाते वक्त हमें पहुंचने का कोई खयाल ही नहीं है।

ज्यादा महत्वपूर्ण है कि मैं पूछूं कि मैं क्यों जीना चाहता हूं, बजाय इसके कि मैं जीने के लिए व्यवस्था करता जाऊं। ज्यादा उचित है कि मैं पूछूं कि मैं क्यों बोलना चाहता हूं, बजाय इसके कि मैं सिर्फ होने की रक्षा करता चला जाऊं।

ये विचार, ये प्रश्न आपके मन में पैदा होने चाहिए, हमारे मनों में बहुत कम प्रश्न पैदा होते हैं। प्रश्न पैदा ही नहीं होते हैं और जब प्रश्न ही पैदा नहीं होते और जिज्ञासा ही पैदा नहीं होती, तो खोज कैसे पैदा होगी? और खोज की आकांक्षा नहीं होगी, तो उस दिशा में श्रम कैसे होगा?

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