चन्नी के चेहरे

पंजाब की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को सत्ता की महत्वाकांक्षाओं के चलते जिस तरह के आंतरिक कलह से गुजरना पड़ा, उसके चलते पार्टी की साख व एकता बचाने के लिये हाईकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया था।

लेकिन रविवार को चन्नी मंत्रिमंडल के गठन के बाद जिस तरह के सवाल फिर उठे और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस तरह शपथ ग्रहण समारोह से अलग रहे, उससे नहीं लगता कि पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है।

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और दो उपमुख्यमंत्री पहले ही शपथ ले चुके थे। रविवार के शपथग्रहण समारोह में 15 मंत्रियों ने शपथ ली, जिसमें सात नये चेहरे शामिल किये गये। वहीं कैप्टन के करीबी माने जा रहे पांच की छुट्टी हुई जो बताता है कि पार्टी में जारी मनभेद अभी भी कम नहीं है।

यक्ष प्रश्न यह भी है कि जब अगले विधानसभा चुनाव पांच महीने बाद होने हैं तो चन्नी कितना डैमेज कंट्रोल कर पायेंगे। क्या जिन वादों को पूरा न करने का आरोप सिद्धू कैप्टन सरकार पर लगाते रहे हैं क्या उन्हें इस अल्पकाल में पूरा कर पायेंगे?

वह भी तब जब चुनाव से पहले आचार संहिता लग जाने से लोकलुभावन फैसले लेने पर रोक लग जाती है। वैसे तो खुद को जनता का मुख्यमंत्री दर्शाने के तमाम उपक्रम वे कर ही रहे हैं और जता रहे हैं कि वे राजा की तरह व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

सवाल यह भी है कि इतने कम समय के लिये नये मंत्री बनाने से पार्टी की उस छवि में सुधार आ पायेगा, जो सत्ता की लड़ाई चौराहे पर आने से पार्टी की बन गई थी। जिस तरह से कैप्टन ने नवजोत सिद्धू को हराने की कसम खाई है, उससे नहीं लगता कि पार्टी में जारी आंतरिक कलह खत्म हो गई है।

पंजाब की राजनीति में कैप्टन अमरिंदर के लंबे अनुभव को कमतर नहीं आंका जा सकता। आने वाले समय में वे पार्टी के लिये मुश्किलें खड़ी करते रहेंगे।

वहीं शपथ ग्रहण समारोह के बाद भी विवादों ने पार्टी का पीछा नहीं छोड़ा। कैप्टन मंत्रिमंडल से खेत खनन अनुबंधों की नीलामी में अनियमितताओं के चलते बाहर किये गये राणा गुरजीत को चन्नी मंत्रिमंडल में शामिल करने पर भी सवाल उठे।

जबकि नवजोत सिद्धू लंबे समय से खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई न करने के आरोप कैप्टन सरकार पर लगाते रहे हैं। जिन मंत्रियों को चुनाव से महज पांच माह पहले हटाया गया, वे सवाल कर रहे हैं कि उनका कसूर क्या था? किस वजह से मंत्रिमंडल से बाहर किया गया।

जो इस बात के संकेत हैं कि आने वाले चुनाव में पार्टी को अकाली दल व आप के अलावा पार्टी के अंतर्विरोधों का सामना भी करना पड़ेगा। चुनाव के वक्त यह विरोध और तल्ख हो सकता है। वह भी तब जब कैप्टन अमरिंदर सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि सिद्धू को मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिये वह कोई भी कुर्बानी दे सकते हैं।

इतना ही नहीं उन्होंने राहुल गांधी व प्रियंका गांधी को अनुभवहीन करार दिया और सलाहकारों पर बरगलाने तक का आरोप लगाया। राजनीतिक पंडित चन्नी को नवजोत सिंह सिद्धू की छाया में चलने वाला मुख्यमंत्री बता रहे हैं।

पिछले दिनों कुछ आयोजनों में जिस तरह से वे चन्नी का हाथ पकड़कर आगे चलते दिखे, उसने इन कयासों को बल दिया। वहीं पार्टी के दो ध्रुवों के टकराव के अलावा पार्टी को किसान आंदोलन से उपजी चुनौती और सत्ता के खिलाफ उपजे आक्रोश का भी सामना करना है।

राज्य में किसान आंदोलन के चलते भाजपा से किनारा करने वाले अकाली दल ने राज्य में बसपा से गठबंधन करके कांग्रेस के लिये नई चुनौती पैदा कर दी है। अनुसूचित जाति के बहुलता वाले राज्य में उत्पन्न इस चुनौती के चलते ही कांग्रेस हाईकमान ने इसी वर्ग के चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है।

देखना होगा कि इस वर्ग में चन्नी कितनी पकड़ बना पाते हैं। कांग्रेस पार्टी में जारी टकराव के बीच आप ताल ठोककर मैदान में उतरी है। देखना होगा कि नया मंत्रिमंडल कांग्रेस की इस चुनौती को किस हद तक कम कर पाता है।

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