विकास

यह सुखद ही है कि प्रधानमंत्री और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के नेताओं की सर्वदलीय बैठक गर्मजोशी और भरोसे के बीच संपन्न हुई। राज्य का विशेष दर्जा खत्म किये जाने के करीब दो साल बाद हुई बातचीत इस मायने में भी महत्वपूर्ण रही कि इससे संवादहीनता खत्म हुई है।

गुरुवार को दिल्ली में आयोजित सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जम्मू-कश्मीर के चौदह नेताओं ने साढ़े तीन घंटे तक चली बातचीत में भाग लिया, जिसमें प्रदेश के चार पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद व महबूबा मुफ्ती भी शामिल थे।

बातचीत की शुरुआत इस बात का संकेत भी है कि अब केंद्र पहले की तरह सख्त नहीं है और विपक्ष भी पहली जैसी तनातनी के मूड में नहीं है। अब तक केंद्र के ऐसे प्रयासों के बाद घाटी में बंद का आह्वान किया जाता था। कहीं न कहीं कश्मीरी नेता यह मान चुके हैं कि राज्य का पूर्व जैसा विशेष दर्जा हासिल कर पाना अब संभव नहीं है।

ऐसे में जितना जल्दी हो सके, लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हो, ताकि उनका भी खोया जनाधार लौट सके। प्रधानमंत्री ने भी कहा कि वहां चुनाव होने चाहिए ताकि लोगों को एक लोकतांत्रिक सरकार मिल सके। जिससे प्रदेश के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। निस्संदेह राजनीतिक नेतृत्व ही जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है।

केंद्र सरकार ने कहा भी है कि जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना हमारी वरीयता में शुमार है। जिसके लिये जरूरी है कि परिसीमन तेजी से हो ताकि विधानसभा चुनाव हो सकें और विकास की राह पर बढ़ने के लिये जनता को एक चुनी सरकार मिल सके।

उम्मीद है कि केंद्र की पहल पर हुई बातचीत जम्मू-कश्मीर की जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेगी। इस बातचीत पर देश ही नहीं, पूरी दुनिया की निगाह रही है। ऐसे में अच्छे वातावरण में हुई बातचीत का क्रम निरंतर जारी रहना चाहिए।

यह सुखद ही है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद जो तल्खी पैदा हुई थी, उस पर अब विराम लगा है। केंद्र के कदम का विरोध कर रहे जिन नेताओं को नजरबंद किया गया था, वे बातचीत की टेबल पर लौटे हैं।

जिसे राज्य के राजनीतिक भविष्य की दिशा में सकारात्मक पहल कहा जायेगा। इससे राज्य के विकास का ढांचा तैयार करने में मदद मिलेगी। संवाद व सकारात्मक व्यवहार से ही बात आगे बढ़ पायेगी। बातचीत इस बात का भी पर्याय है कि जम्मू-कश्मीर के नेताओं का केंद्र पर भरोसा कायम हुआ है जो प्रदेश में विकास व लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा

। अच्छा है कि जम्मू-कश्मीर के दिग्गज नेता राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। जहां तक जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की बात है तो केंद्र सरकार पहले ही कह चुकी है कि अनुकूल परिस्थितियां होते ही राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जायेगा।

वहीं केंद्र ने यह भी साफ कर दिया है कि पड़ोसी देश से बातचीत के महबूबा मुफ्ती के सुझाव पर वह विचार नहीं करेगी। केंद्र से हुई इस बातचीत में कोई एजेंडा नहीं था लेकिन हर नेता को अपनी बात खुलकर रखने की छूट थी।

कुछ नेताओं ने लोगों की जमीन-जायदाद को सुरक्षा देने, स्थानीय लोगों के लिये नौकरी आरक्षित करने, कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करने की मांग की। अनुच्छेद 370 का मामला अदालत में विचाराधीन होने के कारण चर्चा में नहीं आया, लेकिन उमर अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती इसकी बहाली के लिये संघर्ष की बात करते रहे।

हालांकि, वे भी जानते हैं कि यह अब संभव नहीं है। वहां अब शेष देश के समान कानून ही मान्य होंगे। निस्संदेह सकारात्मक माहौल में हुई बातचीत राज्य में लोकतंत्र की बहाली का मार्ग प्रशस्त करेगी। राजनीतिक गतिविधियों की बहाली से अमन और विकास की राह पर जम्मू-कश्मीर भी आगे बढ़ सकेगा।

वहीं सरकार को लंबे आंदोलन व कोरोना संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये व्यापारियों, पर्यटन उद्योग व हॉर्टिकल्चर को आर्थिक संबल देने पर भी विचार करना चाहिए ताकि घाटी के लोग देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें।

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