50 वर्षों के बाद कुदरत ने वैशाख मास में दिया भारी बारिश का तोहफा

बारिश से गर्मी की जुताई का मार्ग खुला

भरुआ सुमेरपुर। किसानों के अनुमान को अगर सच माना जाए तो पिछले 50 वर्षों के बाद पूरे जिले में एक साथ वैशाख मास में इस तरह की बारिश हुई है. इस बारिश से गर्मी के सीजन में खेतों की जुताई का मार्ग प्रशस्त हुआ है.
गर्मी की जुताई खरीफ एवं रबी की फसलों के लिए बेहद मुफीद होती है. इस जुताई के बाद अच्छे उत्पादन की उम्मीद किसान करते हैं और किसानों की उम्मीद वर्षों बाद खरी साबित होने जा रही है.
कस्बे के किसान राधेश्याम तिवारी, सोनू पांडे ने बताया कि बुंदेलखंड में 50 वर्ष पूर्व अक्षय तृतीया के दिन से गर्मी की जुताई का क्रम शुरू होता है. इस जुताई के बाद किसान जैविक खाद खेत में डालता था. उसे उम्मीद रहती थी कि गर्मी की जुताई के बाद खेत में डाली गई जैविक (गोबर) की खाद उत्पादन बढ़ाने में मददगार साबित होगी और होता भी ऐसा था.
धीरे-धीरे मौसम में बदलाव आया और खेती करने का तरीका बदला और गर्मी की जुताई का चलन भी बंद हो गया. इससे उत्पादन घटा और किसानों को नुकसान हुआ. इस वर्ष हुई वैशाख मास की बारिश ने 50 वर्षों की यादों को ताजा कर दिया है.
किसानों को कुदरत के इस तोहफे को कबूल करके गर्मी की जुताई करनी चाहिए इससे लाभ होगा.
इंगोहटा के किसान राजेश द्विवेदी ने अपने अनुभव ताजा करते हुए बताया कि वर्षों पूर्व वैशाख मास में यदि हल्की-फुल्की बूंदाबांदी हो जाती थी तो किसान इसको तोहफे के रुप में कबूल करके सुबह से हल बैल लेकर खेतों की जुताई में जुट जाता था.
खेतों में बिल्कुल भी नमी नहीं होती थी लेकिन किसान के अंदर इस बात का जुनून सवार रहता था कि उसे अच्छे उत्पादन के लिए खेत की जुताई करना है. और वह सूखा ही सही खेत जोतकर ही दम लेता था.
उसकी इस मेहनत का कुदरत सकारात्मक परिणाम भी देती थी और गर्मी की जुताई वाले खेत में अन्य खेतों की तुलना में अधिक उत्पादन होता था. इस वर्ष कुदरत ने पर्याप्त पानी बरसा दिया है लिहाजा किसानों को गर्मी की जुताई करके इसका लाभ लेना चाहिए.
ऊंछा थोक निवासी युवा किसान अखिलेश त्रिपाठी ने बताया कि बुजुर्ग किसान अपना अनुभव साझा करते हुए बताते थे कि गर्मी के सीजन में बारिश होने के बाद जिन खेतों की जुताई के बाद जैविक (गोबर) खाद डाल दी जाती थी और आषाढ़ मास में होने वाली बारिश के बाद लगातार चार माह तक जुताई आदि के बाद जब रबी फसलों के सीजन में बुआई होती थी.
उस खेत में तिलहन का उम्मीद से अधिक उत्पादन होता था. अगर बुजुर्ग किसानों का अनुभव सटीक है तो इस वर्ष वैशाख मास की यह बारिश अगले रबी सीजन में तिलहन के अच्छे उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगी. किसानों को बुजुर्ग किसानों के अनुभव पर इस वर्ष प्रयोग करना चाहिए. इस तरह से किसानों का अनुभव बताता है कि 50 वर्षों के बाद कुदरत ने भले ही तूफान के माध्यम से ही सही कुछ अच्छे संकेत दिये है.
किसानों को कुदरत के इस तोहफे को कबूल करते हुए 50 वर्षों पूर्व होने वाली खेती के प्रयोगों को अपनाते हुए इस वर्ष हुई इस बारिश का पूरा लाभ लेना चाहिए और गर्मी की जुताई करके खेतों को खरीफ के साथ-साथ रबी फसलों के लिए तैयार करना चाहिए.
अगर संभव हो सके तो जुताई के बाद जैविक गोबर की खाद का प्रयोग अवश्य करें. बिदोखर के किसान सुरेश यादव ने कहा कि गर्मी की जुताई के बाद खेत बहुत ही मुलायम हो जाता है.
वैशाख मास में बारिश के बाद होने वाली जुताई के बाद अगर गोबर की खाद का प्रयोग किया जाए तो इससे खेतों में केंचुआ पैदा होता है जो भारी बारिश के बाद खेत की मिट्टी को मुलायम बनाने में मददगार साबित होता है. इससे बारिश के बाद खेत बेहतर तैयार होता है और खेत की उत्पादन क्षमता में डेढ से दो गुना का इजाफा होता है।
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