बहनें कितनी आजाद
रेडियो पर गाना आ रहा था, भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना। घर में शकरपारे के पकने की खुशबू आ रही है। दादी ने नीलम का दुपट्टा ठीक करते हुए कहा, ‘तुम भैया को राखी बांधोगी और बदले में भैया अपनी बड़ी बहन की रक्षा करेगा।’ मम्मी बोलीं, ‘अरे अम्मा, वे जमाने गए, जब लड़कियां भाई की सुरक्षा पर आश्रित थीं, अब तो लड़कियां स्वयं ही सक्षम हैं।’
यह माना जाता है कि बहन अपने भाई की तरक्की और दीर्घायु होने की कामना करती है और बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। यह त्योहार कब शुरू हुआ, कोई नहीं जानता। कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है।
जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने अपना पल्लू फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी।
यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। कहते हैं, परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना का यह पर्व यहीं से प्रारंभ हुआ।
ऐतिहासिक प्रसंग यह है कि मेवाड़ की रानी कर्णावती को बहादुर शाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा की याचना की। हुमायूं ने बहादुर शाह के विरुद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती के राज्य की रक्षा की।
सुखद संयोग है कि रक्षाबंधन का पर्व 75वें स्वतंत्रता दिवस के समीप पड़ रहा है। मन में विचार आया कि क्या आज भी बहनों को सुरक्षा की जरूरत है? यह विचारणीय है कि बेटियों ने इन वर्षों में कितनी प्रगति की?
हमारे समाज में पितृवादी सोच में बेशक लड़कियों के साथ दोयम दरजे का व्यवहार किया जाता है, मगर गत 75 वर्षों में सरकारी नीतियों के कारण महिलाओं की स्थिति में अनेक मानकों पर बदलाव आया है।
स्वतंत्रता के समय महिलाओं में साक्षरता दर 8.9 प्रतिशत थी, जो अब 70.3 प्रतिशत हो गई है। लिंग अनुपात की बात करें, तो 1961 में प्रति हजार पुरुषों पर 976 महिलाएं थीं, अब यह 1,020 महिलाएं प्रति हजार पुरुष हैं।
आज उन महिलाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है, जिनके नाम अकेले अथवा संयुक्त स्वामित्व की संपत्ति, बैंक खातों में दर्ज हैं। बेशक संसद में उनकी संख्या में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है, लेकिन बड़ी संख्या में महिलाएं अपना वोट डालती हैं।
यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लिए महिला वोट महत्वपूर्ण हो गया है।
अब महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में उच्च जिम्मेदार पदों पर आसीन हैं। वे उन क्षेत्रों में भी उपलब्धि हासिल कर रही हैं, जिनको पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान माना जाता है।
लड़़ाकू विमानों की कमान महिलाओं के हाथों में होना, महिला कमांडो द्वारा जेड प्लस सुरक्षा देना, अग्निवीर में महिलाओं की भर्ती जैसा कदम उल्लेखनीय है। अब महिलाएं विज्ञान, अंतरिक्ष, बायो-टेक्नोलॉजी जैसे पारंपरिक पुरुष एकाधिकार वाले क्षेत्रों में भी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं।
उन्होंनेे ई-कॉमर्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों में सफलतापूर्वक स्टार्टअप स्थापित किया है।
कॉरपोरेट भारत में 30 फीसदी महिला कर्मचारी हैं, जबकि इंजीनियरिंग की कक्षाओं में 40 प्रतिशत लड़कियां हैं। पंचायती राज एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें 33 प्रतिशत आरक्षण, जो अब कई राज्यों में 50 प्रतिशत है, के कारण ग्रामीण अंचलों में भी महिलाएं सशक्त हुई हैं।