कल्याण का योग
योग यूं तो सदियों से भारत की सनातन परंपरा का हिस्सा है मगर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने का अभियान 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन व प्रस्ताव रखने के बाद मूर्त रूप में आया। दुनिया के 175 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने का फैसला किया।
इस बार सातवें विश्व योग दिवस को भी कोरोना संकट के चलते वर्चुअली मनाने की कवायद जारी है। संयुक्त राष्ट्र ने इसकी थीम ‘योगा फॉर वेल बीइंग’ यानी मानवता के कल्याण के लिए योग रखा है। कोरोना संकट ने दुनिया को अहसास कराया है कि योग ने महामारी के दौर में न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक व मनोवैज्ञानिक तौर पर भी भयाक्रांत लोगों को मजबूती दी।
इससे कोविड-19 के नकारात्मक प्रभावों तथा अवसाद से उबरने में लोगों को मदद मिली है। संयुक्त राष्ट्र ने भी स्वीकारा है कि महामारी के दौरान योग ने न केवल संक्रमितों को स्वस्थ बनाने में मदद की है बल्कि पृथकवास के दौरान अवसाद से लड़ने की ताकत दी। संक्रमितों के स्वस्थ होने में मदद करने के साथ ही लोगों के भय व चिंताओं को दूर करने में सहायक बना है।
देश में 21 जून 2015 को दिल्ली के राजपथ से शुरू हुआ मुख्य आयोजनों का सिलसिला 2016 में चंडीगढ़, 2017 में लखनऊ, 2018 में देहरादून तथा 2019 में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में रांची तक चला। वर्ष 2020 में कोविड संकट के चलते मुख्य सार्वजनिक आयोजन नहीं किया जा सका।
दरअसल, सामान्य तौर पर प्रचलित योग में हम इसके सीमित रूप का अनुसरण करते हैं। पतंजलि योग सूत्र में वर्णित अष्टांग योग के एक अंग आसन तक सिमटे हैं। सही मायनो में योग व्यापक अर्थों में मानव कल्याण का साधन है। योग के आठ अंग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इसे संपूर्णता प्रदान करते हैं।
जहां यम के पांच प्रकार सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह हमें जीवन में वैचारिक पवित्रता की राह दिखाते हैं, वहीं नियम के पांच प्रकार शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्राणिधान व्यक्तिगत मूल्यों की स्थापना में सहायक हैं।
आसन शरीर को स्थिरता व सुखपूर्वक बैठना सिखाते हैं। वहीं श्वास-प्रश्वास की गति के नियमन को प्राणायाम कहा जाता है जो हमारी प्राणशक्ति को मजबूती देकर तमाम तरह के मानसिक तनाव व अवसाद में मन को स्थिर बनाने का काम करते हैं।
सांसों से हम अपने तन-मन को साध सकते हैं। वहीं इंद्रियों के नियमन की प्रक्रिया को प्रत्याहार कहा जाता है। इसी क्रम में धारणा व ध्यान की परिपक्वता के साथ योगी समाधि या निर्वाण या कैवल्य की अवस्था को हासिल करते हैं। सही मायनो में योग मनुष्य को मानसिक, शारीरिक व आध्यामिक रूप से सशक्त बनाने का साधन है।
योग से मन को उन वृत्तियों से मुक्त करना है जो मनुष्य के सर्वांगीण विकास में बाधक हैं। यह मर्यादित व संयमित जीवन जीने की प्रेरणा है जो कालांतर मनोकायिक रोगों को दूर करने में सहायक है।