बाँदा। किसान आंदोलन और तीन कृषि कानून के विरोध में देशभर के किसान मनाये काला दिवस

-आंदोलन मे कई किसानों की जान चली गई और कुछ सरकार के रवैये से आत्महत्या किये है।

-किसानों आंदोलन को 6 माह हुए दिल्ली बार्डर के आसपास चलते हुए।
-किसानों की मांग स्थाई हैं कि तीन कृषि विधेयक बिल निरस्त किये जायें।
-बुंदेलखंड के बाँदा में बीकेयू ने लॉक डाऊन नियम का पालन करते हुए गांव में प्रतीकात्मक पुतले जलाए व काली पट्टी बांधकर विरोध दर्ज किया।
-मध्यप्रदेश के छतरपुर से किसान आंदोलन कर्मी अमित भटनागर के नेतृत्व में गांव में काला दिवस मनाया गया। अमित भटनागर छतरपुर में गत कई दिन कोविड से पहले छत्रसाल चौराहे पर किसानों के साथ अनशन किये है।
-पश्चिमी यूपी,पंजाब-हरयाणा, दिल्ली आसपास,राजस्थान की बनिस्बत बुंदेलखंड में किसानों का आंदोलन कमतर रहा है। इसका बड़ा कारण सरकार के बनाये कृषि कानून की समझ मे कमी व एकजुटता की कमी है।
देशभर में किसान आंदोलन के 6 माह करीब पूरे हो चुके हैं। सत्ता से लड़ते हुए यह साहसी किसानों का रेला पंजाब व हरियाणा की अगुवाई में संचालित है।
तमाम उठापटक के बीच सत्ता ने किसानों में गुटबाजी करवाने का प्रयास किया और आंशिक सफल भी हुई। इसी का परिणाम निकला कि शुरुआत में किसान आंदोलन से जुड़े नेता मसलन योगेंद्र यादव (स्वराज्य अभियान संयोजक), मेधा पाटकर,कई दिग्गज पंजाबी किसान नेता आपस मे मतभेदों व क्रेडिट प्रतिस्पर्धा के शिकार हूए
। इधर किसानों पर अनायास हुए हमले से भारतीय किसान यूनियन टिकैत गुट के नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन की कमान जनभागीदारी व जनभावना में अपने हाथ ली। उधर दक्षिण से पंजाब, हरियाणा तक टिकैत ने बिल के खिलाफ व किसानों की जागरूकता को लॉक डाऊन से पहले जनसभा की हैं।
बतलाते चले इस ऐतिहासिक किसानों के आंदोलन में पंजाबी, हरयाणवी किसानों की कारसेवा,समर्पण, लंगर सेवा ने दुनियाभर में चर्चा बटोरी हैं। अलबत्ता हठधर्मी केंद्र की सरकार तीन कानून पर झुकने को तैयार नहीं हैं। कोरोना काल मे भी निर्भय होकर आंदोलन स्थल पर बैठे ये किसान आज 6 माह से सरकार के सामने विधेयक वापसी का अनुरोध कर रहे है।
आज 26 मई को देशभर में किसान काला दिवस मनाये हैं। वहीं बुंदेलखंड किसान यूनियन ने लॉक डाऊन पर गांव से यह सहभागिता की हैं। बाँदा के ग्राम पड़मई में किसानों ने सरकार का पुतला जलाकर अपना विरोध व किसानों को समर्थन दिया हैं। देखना यह होगा कि यह आंदोलन देश की राजनीति व किसानों की क्षवि पर क्या दिशा-दशा तय करती है।
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