‘एकतरफा दबदबा और जोर-जबरदस्ती’, ट्रंप की टैरिफ वॉर के बीच भारत से बोला चीन

गलवां घाटी में हिंसक झड़प के पांच साल भारत और चीन फिर से संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। ये प्रयास ऐसे समय में किए जा रहे हैं, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाए हैं। चीन ने अमेरिका के टैरिफ वॉर की ओर इशारा करते हुए कहा कि एकतरफा मनमानी और जोर-जबरदस्ती बढ़ चुकी है।

गलवां घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच टकराव को पांच वर्ष बीत चुके हैं और अब दोनों देश संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत के सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। इसी कड़ी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए और सोमवार को उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ वार्ता की। उनका यह दौरा एशिया की इन दोनों ताकतों के बीच संबंध सुधारने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। दोनों देश अमेरिकी टैरिफ युद्ध से पैदा हुई वैश्विक अस्थिरता का मुकाबला करना चाहते हैं।

बैठक में जयशंकर ने कहा कि वांग यी का यह दौरा द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने का एक अच्छा अवसर है। उन्होंने कहा, हमारे संबंधों ने एक मुश्किल दौर देखा है, लेकिन अब हम आगे बढ़ना चाहते हैं। इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से ईमानदार और रचनात्मक रुख जरूरी है। जयशंकर ने आगे कहा, हमें आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और आपसी हितों के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए। मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को टकराव का रूप नहीं लेने देना चाहिए। बाद में उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच बातचीत में आर्थिक और व्यापारिक मुद्दे, धार्मिक यात्रा, लोगों के बीच संपर्क, नदी से जुड़ा डाटा साझा करना, सीमा व्यापार, संपर्क और द्विपक्षीय आदान-प्रदान जैसे विषय शामिल होंगे।

जयशंकर ने कहा, हमारे संबंधों में कोई सकारात्मक प्रगति तभी संभव है, जब हम मिलकर सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखें। सीमा से सैनिकों को हटाने (डी-एस्केलेशन) की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना भी जरूरी है। विदेश मंत्री ने कहा, जब दुनिया के दो सबसे बड़े देश मिलते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य पर बात होना स्वाभाविक है। हम एक निष्पक्ष, संतुलित और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की बात करते हैं, जिसमें एशिया भी बहुध्रुवीय हो। इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना बेहद जरूरी है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत को उम्मीद है कि यह चर्चा एक स्थिर, सहयोगात्मक और भविष्य की ओर देखती हुई भारत-चीन साझेदारी की ओर ले जाएगी, जो दोनों देशों की हितों की सेवा करे और उनकी चिंताओं को संबोधित करे।

सूत्रों के मुताबिक, चीन ने भारत की तीन मुख्य चिंताओं (खाद, दुर्लभ खनिज और टनल बोरिंग मशीन) को दूर करने का भरोसा दिलाया है। इन सब में दुर्लभ खनिज सबसे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन और आधुनिक सैन्य उपकरणों के निर्माण में होता है। इनका अधिकांश उत्पादन चीन में होता है।

बैठक के बाद चीन की ओर से जारी बयान में कहा गया कि वांग यी ने जयशंकर से कहा कि दुनिया इस समय ‘सदी में एक बार आने वाले बदलावों’ के दौर से गुजर रही है और वह भी बहुत तेजी से। उन्होंने अमेरिका की ओर इशारा करते हुए कहा, एकतरफा दबदबा और जोर-जबरदस्ती बढ़ चुकी है और मुक्त व्यापार और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, दुनिया के दो सबसे बड़े विकासशील देशों के रूप में चीन और भारत को वैश्विक स्तर पर जिम्मेदारी दिखानी चाहिए, जिनकी कुल आबादी 2.8 अरब से अधिक है। हमें बाकी विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण पेश करना चाहिए कि कैसे एकता और आत्मनिर्भरता से बहुध्रुवीय विश्व और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का लोकतंत्रीकरण बढ़ाया जा सकता है। वांग यी ने कहा कि कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत-चीन संबंधों की नई शुरुआत हुई है।

उन्होंने कहा, दोनों देशों ने अपने नेताओं की ओर से तय किए गए सहमति के बिंदुओं को ईमानदारी से लागू किया है, सभी स्तरों पर बातचीत फिर से शुरू हुई है, सीमा क्षेत्रों में शांति बनी हुई है और भारतीय तीर्थयात्रियों ने तिब्बत के पवित्र स्थलों की यात्रा फिर शुरू की है। यह सब दर्शाता है कि भारत-चीन संबंध फिर से सहयोग की राह पर लौट रहे हैं। वांग यी ने यह भी कहा कि चीन और भारत को आत्मविश्वास के साथ एक-दूसरे के बीच की बाधाओं को खत्म करना चाहिए, सहयोग बढ़ाना चाहिए और रिश्तों में सुधार की गति को मजबूत करना चाहिए। वांग यी मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी सी

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