सेहत की जन्मपत्री

देश में डिजिटल हेल्थ मिशन के विस्तार के रूप में प्रत्येक नागरिक को डिजिटल स्वास्थ्य आईडी प्रदान करने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की गई है जो उपचार के वक्त हर व्यक्ति के रोग व उपचार का विवरण एक क्लिक में सामने ले आएगी। साथ ही देश में कहीं भी और कभी भी किसी डॉक्टर द्वारा उसे देखा जा सकेगा।

इसमें सारी जानकारी का डाटा संरक्षित किया जा सकेगा और रोगी की सहमति के बाद उसे देखा जा सकेगा। ज्यादा समय नहीं हुआ जब बीते अप्रैल-मई में कोरोना के कोहराम ने हमारे चिकित्सा तंत्र की लाचारगी को उजागर किया था।

रोज लाखों मरीजों के संक्रमित होने के साथ हजारों लोगों के पर्याप्त चिकित्सा अभाव में मरने की खबरें आई थी। हमारे चिकित्सा तंत्र का ढांचा पूरी तरह चरमरा गया था। कोरोना संकट का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि संचरण की बाधाओं के चलते लॉकडाउन के दौरान टेलीमेडिसन का क्षेत्र उभरा है।

डॉक्टर और मरीज के बीच व्यक्तिगत संपर्क न होने के बावजूद उपचार की प्रक्रिया को गति मिली है। लेकिन सरकार के डिजिटल प्रणालियों को विस्तार देने के बावजूद एक हकीकत यह भी है कि महज तकनीक के बल पर ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव नहीं लाये जा सकते।

जब तक स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त ढांचागत सुधार नहीं होता और प्रशिक्षित मानव संसाधन उपलब्ध नहीं होते, तकनीक के जरिये चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त रूप में उपलब्ध नहीं करायी जा सकतीं। भारत में जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टरों की उपलब्धता बढ़ाए जाने की सख्त जरूरत है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जहां एक हजार लोगों पर एक चिकित्सक होना चाहिए, वहां भारत में डेढ़ हजार से अधिक लोगों पर एक चिकित्सक है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार तीन सौ लोगों पर एक नर्स होनी चाहिए, वहीं भारत में यह अनुपात 670 है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह कमी और भी ज्यादा है। पहले से ही मरीजों के बोझ से चरमराये शहरी चिकित्सा तंत्र से उपचार की उम्मीद में ग्रामीण मरीज शहरों का रुख करते हैं।

दरअसल, वक्त की जरूरत है कि नयी तकनीक के प्रयोग के साथ ही देश के हर जिले में एक मेडिकल कालेज व अस्पताल के लक्ष्य को समय पर हासिल किया जाये।

साथ ही शैक्षिक स्तर की कमी को देखते हुए देश में डिजिटल डिवाइड को भी दूर किया जाये ताकि लाखों लोग आधुनिक प्रौद्योगिकी आधारित सार्वजनिक सेवाओं का अधिकतम लाभ उठा सकें। स्वास्थ्य क्षेत्र को नया जीवन देने के लिये नीति-नियंताओं को आगे एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा।

यह अच्छी बात है कि डिजिटल आईडी के जरिये देश के तमाम अस्पताल आपस में रोगियों से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकेंगे। एक आम आदमी मोबाइल ऐप के जरिये अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड तक सहज ही पहुंच बना सकेगा। साथ ही मरीजों को पुराने पर्चों को संभालने व डॉक्टर के पास ले जाने का भी झंझट नहीं रहेगा।

हाल के दिनों में हमने नयी तकनीक के जरिये बिलों के भुगतान व धन हस्तांतरण से दैनिक जीवन में राहत का अनुभव किया है। बहुत संभव है कि सेहत के क्षेत्र में हेल्थ आईडी के जरिये कालांतर बड़ा बदलाव आये। वैसे इसमें व्यक्ति के संवेदनशील स्वास्थ्य डाटा को सुरक्षित बनाने की सख्त जरूरत है।

इसके दुरुपयोग की आशंका हमेशा बनी रहेगी। यह भी कि देश-विदेश की बड़ी दवा कंपनियां निजी लाभ के लिये इन्हें हासिल न कर पायें। लेकिन इन आशंकाओं के बीच प्रगतिशील प्रयासों को खारिज नहीं किया जा सकता। इससे आयुष्मान भारत योजना के अनुभव व सभी पक्षों का मूल्यांकन भी होगा।

इस योजना को लेकर भी व्यक्ति व राज्य सरकारों के स्तर पर कई तरह की आशंकाएं थीं। इसका विभिन्न चिकित्सा योजनाओं के साथ सामंजस्य बनाया गया है। खामियों को दूर करके ऐसी योजनाओं को उपयोगी बनाना वक्त की जरूरत भी है।

जरूरत इस बात की भी है कि चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार हो और उन तक मरीजों की सहज पहुंच हो। चिकित्सा संसाधन पर्याप्त हों व दवाओं की उपलब्धता में पारदर्शी व्यवस्था हो। इनके अभाव में अच्छी योजनाओं की सफलता संदिग्धता बनी रहेगी और सस्ता इलाज महज मृगमरीचिका बना रहेगा।

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