एकदा

महात्मा गांधी की छवि एक अनुशासित, समय के पाबन्द व्यक्ति के रूप में है। लेकिन उनमें हास्य-बोध भी गज़ब का था। गांधी जी आज़ादी की लड़ाई के दौरान बहुत सारी जनसभाएं करते थे, जिसमें उनके अहिंसात्मक आन्दोलन पर जोर रहता था।

एक बार की बात है कि वे एक जनसभा कर रहे थे। गांधी जी गंभीरतापूर्वक अपनी बात जनता के सामने रख रहे थे। तभी पीछे के लोग शोर मचाने लगे कि उन्हें कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा है।

गांधी जी ने भाषण रोक कर पूछा, ‘जिस-जिस को सुनाई नहीं दे रहा है, वे हाथ उठायें।’ कुछ लोगों ने हाथ उठा दिए। गांधी जी ने हंसते हुए कहा, ‘देखिये, ये तो बड़ा विरोधाभास है।

मेरा भाषण आप को सुनाई नहीं दे रहा था। पर ये बात आप को सुनाई दे गयी कि हाथ उठाना है।’ इतना सुनते ही पूरी सभा ठहाकों से भर गयी।

अक्सर देखा जाता है कि लोग अरुचिगत बातों को सुनना नहीं चाहते, भले ही वे काम की ही बातें क्यों न हों। बापू ने इस कमजोरी का अहसास कराया और लोग फिर से मग्न होकर सुनने लगे।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker