अशोक. स्तंभ जो हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है, किसने बनाया और किसका था डिजाइन, जाने विस्तार से

दिल्ली: अशोक स्तंभ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, हाल ही इसे नए संसद के शीर्ष स्थान पर लगाया गया है. सम्राट अशोक के शासन काल में बने चार सिंहों को दिखाने वाला ये स्तंभ आखिर कैसे देश का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया. किस नेता ने इसके लिए सुझाव दिया और फिर किसने इसे छांटा. फिर किसने इसे इस तरह डिजाइन में उतारा कि हमेशा हमेशा के लिए भारतीय गणराज्य का प्रतीक होकर इस्तेमाल में आने लगा.

इस प्रतीक का उपयोग केंद्र सरकार, कई राज्य सरकारों और सरकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है. इस स्तंभ को अशोक ने 280 ईसा पूर्व बनवाया था. ये स्तंभ वाराणसी में सारनाथ संग्रहालय में रखा है. इसे 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया. ये प्रतीक भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का एक हिस्सा है. सभी भारतीय मुद्रा पर प्रकट होता है. भारतीय पासपोर्ट पर भी ये प्रमुख रूप से अंकित है. आधिकारिक पत्राचार के लिए किसी व्यक्ति या निजी संगठन को प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति नहीं है.

जब भारत आजाद होने वाला था. उससे पहले 22 जुलाई 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव संविधान सभा के सामने रखा कि देश के नए ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए डिजाइन बनाया जाना चाहिए. नेहरू ने साथ ही ये सुझाव भी दिया कि बेहतर हो हम इन चीजों में मौर्य सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासनकाल को रखें. आधुनिक भारत को अपने इस समृद्ध और चमकदार अतीत के आदर्शों और मूल्यों को सामने लाना चाहिए.

क्या जाहिर करते हैं सम्राट अशोक के ये चार शेर
सारनाथ में जो ये अशोक स्तंभ रखा है, वो 07 फुट से ज्यादा ऊंची है, उसमें दहाड़ते हुए एक जैसे शेर चारों दिशाओं में स्तंभ के ऊपर बैठे हैं. ये स्तंभ ताकत, साहस, गर्व और आत्मविश्वास को भी जाहिर करता है. दरअसल मौर्य शासन के ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट की ताकत को दिखाते थे. जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई.

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