जेल से दादी के साथ निकलेगा 3 साल का मासूम

जेल में तीन महीने से है बंद, दादी ने की थी बहू की हत्या

उरई/जालौन,संवाददाता। अपनी मां या परिजनों के साथ बिना किसी जुर्म के जेल की चाहर दीवारों में बंद मासूम अब खुली हवा में सांस ले सकेंगे। शासन ने इसके लिये प्रदेश के सभी जेलों से रिपोर्ट मांगी थी। जिसमें प्रदेश के 37 जेलों में बंद 58 महिला कैदियों की रिपोर्ट शासन को मिली है। जिसमें जालौन की एक महिला भी शामिल है, जो अपने 3 साल के नाती के साथ जेल में सजा काट रही है। जिसकी जेल से कभी भी रिहाई हो सकती है।

जालौन की उरई जेल प्रशासन को शासन के निर्देशों का इंतजार है। डकोर के ग्राम चिल्ली की रहने वाली सजायाफ्ता महिला कैदी दुर्गावती उरई जिला कारागार में 6 अप्रैल 2022 से अपने 3 साल के नाती आशीष के साथ बंद है। उसे आईपीसी की धारा 304 बी दहेज हत्या के तहत अपर सत्र न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 14 मई 2022 को दस साल की सजा सुनाई थी।

जेल अधिकारी सुनीत कुमार सिंह चैहान ने बताया कि महिला बंदी दुर्गावती की रिहाई के संबंध में मांगी गई सूचना उच्चाधिकारियों को भेजी जा रही है। डकोर थाना क्षेत्र की ग्राम चिल्ली की रहने वाली दुर्गावती समेत आधा दर्जन लोगों के खिलाफ बहू की गैरइरादतन हत्या व दहेज प्रथा में 31 मार्च 2022 को डकोर थाने में मुकदमा लिखा गया था। जिसके बाद 6 अप्रैल 2022 को जेल भेजा गया था।

विवेचना के दौरान दुर्गावती और अन्य दोषी पाए जाने पर चार्जशीट न्यायालय में दाखिल किया गया। न्यायालय ने 14 मई 2022 को 10 साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी। जिसके बाद उसका 3 साल का नाती आशीष भी उसी के साथ रह रहा था, जो जेल में बंद था।

लेकिन वह अब खुली हवा में सांस ले सकेगा। उरई जिला कारागार के जेल प्रभारी सुनीत सिंह चैहान ने बताया कि शासन के आदेश पर दुर्गावती की फाइल भेज दी गई है। जल्द ही दुर्गावती के साथ उसके नाती आशीष को जेल से रिहा करने का ऑर्डर आयेगा। यह योजना पूरे प्रदेश में चल रही है। जिसके तहत यह कदम उठाया गया है।

गृह मंत्रालय के निर्देश के बावजूद बच्चों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है। यहां तक कि उन्हें तभी अलग से विशेष मांग पर दूध उपलब्ध कराया जाता है, अगर उनकी मां का दूध न बन रहा हो। जेल अधिकारियों का कहना है कि बच्चों को पर्याप्त आहार दिया जाता है। जिसमें दूध, दलिया और खिचड़ी होती है। लेकिन आशा के मुताबिक जेल में बच्चो को सही पोषण नहीं मिल पाता है। जिससे उन्हें कठिनाइयों का सामना और कुपोषित भी होने का खतरा बना रहता है।

आशाओं के मुताबिक खुले वातावरण और जेल का अनुभव इससे बिल्कुल अलग रहा है। इसके लिए दिशा निर्देश साल 2006 में एक मुकदमे के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने महिला कैदियों और उनके बच्चों के कल्याण के लिए नियम निर्धारित किये थे। जिसके मुताबिक इन बच्चों को हफ्ते में कम से कम एक बार अपनी मां के पास आने की अनुमति दिए जाने की बात कही गई थी।

लेकिन शायद ही कभी इसके लिए अनुमति दी गई हो। सभी प्रक्रियाओं के लिए 2016 में जारी किए गए गृह मंत्रालय के आदेश जेल मैनुअल और 2011 में जारी संयुक्त राष्ट्र के बैंकॉक नियम प्रोटोकॉल भी बच्चों के साथ जेल में बंद महिला कैदियों के कल्याण की प्रक्रियाओं का निर्धारण करते हैं।

इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि ये और सुप्रीम कोर्ट का फैसला दोनों के ही कल्याण पर ष्सकारात्मक प्रभावष् डालने वाला है। लेकिन ष्इन नीतियों और उनके कार्यान्वयन के बीच अंतरष् है।

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