उम्मीदों के निष्कर्ष

कोरोना संक्रमण की विश्वव्यापी त्रासदी के बीच यह भारत की उपलब्धि ही कही जायेगी कि देश में पचास करोड़ से अधिक लोगों को पहला कोरोनारोधी टीका लग चुका है। यह आंकड़ा दुनिया के कई बड़े देशों की कुल आबादी से अधिक है। देश में स्वदेशी टीके का तैयार होना और कई विदेशी टीकों का उत्पादन कोरोना संक्रमण के खिलाफ हमारे अभियान को ताकत देता है। देश बेहद घातक डेल्टा वेरिएंट की त्रासदी से धीरे-धीरे उबरने लगा है।

दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर में संक्रमण की दर में धीरे-धीरे कमी आ रही है। ऐसे वक्त में जब देश में कुल संक्रमण का आकंड़ा सवा तीन करोड़ को छूने को है, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से सवा चार लाख लोगों को हम खो चुके हैं, देश में तीन करोड़ लोगों के कोरोना संकट से उबरने के बावजूद संक्रमण की चुनौती खत्म नहीं हुई है। तीसरी लहर की आशंका को लेकर चिकित्सा विज्ञानी चेता रहे हैं। ऐसे में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर के हालिया अध्ययन के निष्कर्ष उम्मीद जगाने वाले हैं।

आईसीएमआर के अध्ययन में दावा किया गया कि कोरोना संक्रमण रोकने के लिये कोविडरोधी टीका कोवैक्सीन और कोविशील्ड की एक-एक खुराक लेने से रोग के खिलाफ बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। दुनिया में अपनी किस्म का यह विशेष अध्ययन उत्तर प्रदेश में करीब सौ लोगों पर किया गया। इसमें 18 लोग ऐसे थे जिन्होंने अनजाने में ही टीके की पहली खुराक कोविशील्ड और दूसरी खुराक कोवैक्सीन ले ली थी। लेकिन इन लोगों में बेहतर ढंग से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई। आईसीएमआर का अध्ययन इस तरह अलग वैक्सीन की एक-एक खुराक लेने को सुरक्षित बताता है। उल्लेखनीय बात यह कि इस प्रयोग के प्रतिकूल प्रभाव वैसे ही थे, जैसा कि एक ही वैक्सीन की दो खुराक लेने के बाद सामने आते हैं। इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह अपने किस्म का पहला अध्ययन है, जिसमें दो अलग-अलग टीकों के खुराक के असर की प्रामाणिक जानकारी दी गई है।

दरअसल, तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच देश में संक्रमणरोधी टीकों का आंकड़ा ऐतिहासिक रूप से पचास करोड़ पार कर जाना देश का आत्मविश्वास बढ़ाने वाला है। ऐसे वक्त में जब यूरोप-अमेरिका में तीसरी-चौथी लहर दस्तक दे रही है तो हमारे लिये बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। अभी भारत डेल्टा वेरिएंट की भयावह त्रासदी से उबरने की कोशिश में है।

लेकिन संकट अभी टला नहीं है। महामारी की दूसरी लहर में चिकित्सा संसाधनों के अभाव में हमने जिस मानवीय त्रासदी के भयावह दृश्य देखे, उससे हमें सबक लेने की जरूरत है। चिकित्सा के मोर्चे पर तैयारी की तो जरूरत है ही, एक नागरिक के रूप में भी सतर्कता की जरूरत है। एक बड़ी आबादी मानकर चल रही है कि देश से कोरोना की अंतिम विदाई हो चुकी है।

पिछले दिनों पर्यटन स्थलों पर उमड़ती बेपरवाह भीड़ और कोरोना से बचाव के उपायों की अनदेखी चिंता बढ़ाने वाली है। कमोबेश यही स्थिति कस्बों-गांवों से लेकर छोटे-बड़े शहरों की भी है। ये स्थिति कहीं न कहीं तीसरी लहर की चिंताओं को बढ़ाने वाली है। पिछली लहर की त्रासदी से सबक लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। ऐसे में सरकार द्वारा अमेरिकी दवा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के सिंगल शॉट वैक्सीन को आपातकालीन मंजूरी उम्मीद जगाने वाली है।

इसी तरह अन्य अमेरिकी वैक्सीनों व रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी के उपयोग व उत्पादन की आपातकालीन अनुमति सकारात्मक कदम कहा जा सकता है जो कोरोना संक्रमण उन्मूलन के लिये हमारी लड़ाई को मजबूती देगा। ऐसे में डीआरडीओ को कोरोनारोधी दवा और अन्य वैकल्पिक दवाओं का उत्पादन व उपलब्धता हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस लड़ाई में हमारे चिकित्सा वैज्ञानिकों की भूमिका बढ़ जाती है।

सरकार और नागरिकों के स्तर पर बेहतर तालमेल के साथ ही हम कोरोना संक्रमण के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ सकते हैं। तभी हम विश्वास से भारत को कोरोना मुक्त करने के संकल्प को हकीकत बना सकते हैं। लड़ाई लंबी जरूर है लेकिन आत्मनिर्भर भारत इस लड़ाई को जीतने में सक्षम हो सकता है।

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