पापा की सीख
एक दिन नन्हीं प्रज्ञा, हो रही थी घर में बोर।
गर्मियों की दोपहर थी, सन्नाटा था हर ओर।
पापा बैठे कर रहे थे, लैपटॉप पर कोई काम।
बिटिया रानी को देख, पुकारा उसका नाम।
उसे गुमसुम देख, बोले प्रज्ञा है नाम तुम्हारा।
समय बिताने को, लो तुम किताबों का सहारा ।
किताबें होतीं हैं मित्र, देती हैं हर तरह का ज्ञान।
इनको साथी बना लो, पूरे होंगें सब अरमान।
– अलका जैन ‘आराधना’