जिन्दा कौमें 5 साल का इंतजार नहीं करतीं
अंग्रेजों की कृपा पर पैरोल नही ली थी लोहिया ने
देश के विभाजन के खिलाफ थे लोहिया
डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर विशेष
लखनऊ,संवाददाता। डॉ. राम मनोहर लोहिया देश के ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम है, जो एक नई सोच और प्रगतिशील विचारधारा के मालिक थे। अपने सिद्धांतों से इतर कभी समझौता नही करते थे।
सादगी और कम खर्च के आदी लोहिया ने जवाहर लाल नेहरू के शाही खर्च का विरोध भी खुलकर कर दिया था। उनके सिद्धांत और बताए आदर्श आज भी लोगों के अंदर एक नई ऊर्जा भरते हैं।
डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में हुआ था। उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक थे और मात्र ढाई वर्ष की आयु में ही उनकी माताजी चन्दा देवी का देहान्त हो गया था।
इनके पिता गांधीजी से काफी प्रभावित थे, जिसके कारण नन्हें लोहिया पर भी गांधी जी का काफी असर हो गया।राममनोहर लोहिया ने बंबई के मारवाड़ी स्कूल में पढ़ाई की।
उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद इंटरमीडिएट में दाखिला बीएचयू में कराया।
उसके बाद उन्होंने वर्ष 1929 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पीएचडी करने बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी, चले गए, जहां से उन्होंने वर्ष 1932 में पीएचडी की, वहां उन्होंने शीघ्र ही जर्मन भाषा सीख लिया और उनको उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए वित्तीय सहायता भी मिली
।साल 1921 में राम मनोहर लोहिया पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिले थे और कुछ सालों तक उनकी देखरेख में कार्य करते रहे लेकिन बाद में उन दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों और राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर टकराव हो गया, 18 साल की उम्र में वर्ष 1928 में युवा लोहिया ने ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित श्साइमन कमीशनश् के विरोध में प्रदर्शन किया।
भारत छोड़ो आंदोलन ने लोहिया को परिपक्व नेता साबित कर दिया। 9 अगस्त 1942 को जब गांधी और अन्य कांग्रेस के नेता गिरफ्तार कर लिए गए, तब लोहिया ने भूमिगत रहकर श्भारत छोड़ो आंदोलनश् को पूरे देश में फैलाया।
भूमिगत रहते हुए श्जंग जू आगे बढ़ो, क्रांति की तैयारी करो, आजाद राज्य कैसे बने जैसी पुस्तिकाएं लिखीं। 20 मई 1944 को लोहिया को मुंबई में गिरफ्तार करके एक अंधेरी कोठरी में रखा गया, ये वो ही कोठरी है, जहां भगत सिंह को फांसी दी गई थी।
इस दौरान लोहिया को पुलिस की ओर से काफी यातनाएं दी गईं।1945 में लोहिया को लाहौर से आगरा जेल भेज दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने पर गांधी और कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दिया गया लेकिन लोहिया और जयप्रकाश नारायण ही जेल में थे।
अंग्रेजों की सरकार और कांग्रेस की बीच समझौते की बातचीत शुरू हो गई। इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार बन गई। सरकार का प्रतिनिधि मंडल डॉ लोहिया से आगरा जेल में मिलने आया।
इस बीच लोहिया के पिता हीरालाल की मृत्यु हो गई ,किन्तु लोहिया ने सरकार की कृपा पर पेरोल पर छूटने से इंकार कर दिया।
जब भारत स्वतंत्र होने के करीब था तो उन्होंने दृढ़ता से अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से देश के विभाजन का विरोध किया था, वे देश का विभाजन हिंसा से करने के खिलाफ थे, आजादी के दिन जब सभी नेता 15 अगस्त, 1947 को दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, उस समय वे भारत के अवांछित विभाजन के प्रभाव के शोक की वजह से अपने गुरु के साथ दिल्ली से बाहर थे।
आजादी के बाद भी वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ही अपना योगदान देते रहे। उन्होंने आम जनता और निजी भागीदारों से अपील की कि वे कुओं, नहरों और सड़कों का निर्माण कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए योगदान में भाग लें।
तीन आना, पन्द्रह आना के माध्यम से राम मनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर होने वाले खर्च की राशि श्एक दिन में 25000 रुपएश् के खिलाफ आवाज उठाई।
उस समय भारत की अधिकांश जनता की एक दिन की आमदनी मात्र 3 आना थी जबकि भारत के योजना आयोग के आंकड़े के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत आय 15 पन्द्रह आना था।
मार्च 1948 में नासिक सम्मेलन में सोशलिस्ट दल ने कांग्रेस से अलग होने का निश्चय किया। उन्होंने कृषि से सम्बंधित समस्याओं के आपसी निपटारे के लिए ‘हिन्द किसान पंचायतश् का गठन किया।
लोहिया भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और उनके अथक प्रयासों का फल था कि 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस की पराजय हुई थी।
30 सितम्बर 1967 को लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल अब जिसे लोहिया अस्पताल कहा जाता है को पौरूष ग्रंथि के आपरेशन के लिए भर्ती किया गया जहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया।