महारानी लक्ष्मीबाई की मनाई गई पुण्यतिथि

भरुआ सुमेरपुर। कस्बे के वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे जरा याद करो कुर्बानी के तहत समरभूमि की बेजोड शेरनी महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि श्रृद्धापूर्वक मनाई गई. संस्था के अध्यक्ष डा. भवानीदीन ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई वास्तव मे रणक्षेत्र की बेजोड शेरनी थी. वह बेमिसाल शौर्य की साक्षी थी.
रानी सत्तावनी समर की महान वीरांगना थी. उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. इनका प्रारंभिक नाम मणिकर्णिका था. साथ ही इन्हें मनु और छबीली भी कहा जाता था. पिता मोरोपंत ताबें मराठा बाजीराव की सेवा मे थे. मां भागीरथी बाई का लाड प्यार मनु को बचपन से नहीं मिला. मां का निधन जल्दी हो गया था.
पिता मनु को बाजीराव पेशवा के दरबार मे ले जाने लगे. मनु ने बचपन मे ही शास्त्र और शस्त्रों की शिक्षा ग्रहण करली. मनु का मात्र 14 वर्ष की उम्र मे झांसी के राजा गंगाधर राव से 1842 मे विवाह हो गया था. शादी के बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई हुआ.
1851 मे रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जिसकी मात्र चार माह बाद मृत्यु हो गयी. राजा के अधिक अस्वस्थ होने के कारण 1853 मे दामोदर राव को गोद लिया गया. 21 नवम्बर 1853 को राजा का देहावसान हो गया. गोरी सरकार ने राज्य हडप नीति के तहत झांसी को हडप लिया. इस पर रानी ने कहा कि मैं झांसी नहीं दूगीं.
सत्तावन के संग्राम मे झांसी प्रमुख केन्द्र रहा. रानी ने सत्तावन के समर मे अद्भुत शौर्य का परिचय दिया. भितरघातियो और राजाओं का आपसी रागद्वेष इस महा समर की पराजय का कारण बना.
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय मे रानी युद्ध करते हुए घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुई. इनके अविस्मरणीय शौर्य को हमेशा याद किया जायेगा. कार्यक्रम मे अवधेश कुमार गुप्ता एडवोकेट, अशोक अवस्थी और सचिन गुप्ता आदि मौजूद रहे।
Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker