ज्वार चारे में धूरिन जहर, बिन बारिश न खिलाएं
बांदा,संवाददाता बुंदेलखंड में खरीफ के मौसम में तेज धूूप और तपिश से हरा चारा खासकर ज्वार जहरीली होने का खतरा है। इसका जहर बारिश से ही धुलेगा। किसानों को सलाह दी गई कि बारिश से पहले पशुओं को हरी ज्वार का चारा न खिलाएं।
अलबत्ता सिंचाई मुहैया हो तो कम से कम से दो पानी लगाने के बाद ही चारा काटकर खिलाएं। प्रगतिशील किसान और बुंदेलखंड जैविक कृषि संचालक मोहम्मद असलम खां ने बताया कि खरीफ में पशुओं के लिए बुंदेलखंड में ज्वार का चारा ज्यादा प्रचलित है।
यह पौष्टिक भी होता है।इसमें आठ से 10 फीसदी क्रूड प्रोटीन पाई जाती है, लेकिन ज्वार की फसल के शुरुआती दिनों में धूरिन नाम का पदार्थ इसमें काफी पैदा हो जाता है। सिंचाई कम होने पर इसकी संभावना कम रहती है।
अधिक नाइट्रोजन का उपयोग और फास्फोरस व पोटैशियम की कमी से भी धूरिन बढ़ जाता है।इससे बचाव के लिए जरूरी है कि गर्मी में ज्वार की फसल में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
कहा कि एक दो बार बारिश हो जाने से धूरिन की मात्रा घटने लगती है और इसका असर खत्म हो जाता है। इसी के बाद इसे पशुओं को खिलाना चाहिए। शुरुआती 40 दिनों में धूरिन ज्यादा रहता है।
असलम ने कहा कि ज्यादा जरूरी हो तो चारे को काटकर साफ पानी में धोने के बाद खुली हवा में रखकर दो-तीन घंटे सुखाने के बाद ही पशुओं को खिलाएं। धूरिन एक साइलोजेनिक ग्लूकोसाइड है। जब पशु यह हरा चारा खाता है, तो इसमें मौजूद सूक्ष्म जीव धूरिन को हाइड्रोलिसिस करके पशु के पेट में हाइड्रोजन साइनाइड नामक जहर पैदा कर देता है।
यह जहर कोशिकाओं में मौजूद साइटोक्रोम ऑक्सीडेज नामक एंजाइम को काम करने से रोकता है। इससे दम घुटने से पशु की मौत हो जाती है। यह सब इतनी जल्दी और तेज होता है कि पशु को बचाने का मौका नहीं मिल पाता।