पंजाब के पांच जिलों के 425 गांवों में गरीबों को भोजन खिलाने के लिए किया जा रहा ये अनूठा प्रयास, पढ़े पूरी खबर

पंजाब के पांच जिलों के 425 गांवों के लोग हर दिन दस हजार जरूरतमंदों को निश्शुल्क भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। सभी प्रतिदिन अपनी-अपनी बारी से सहयोग करते हैं, जिससे फरीदकोट के कैंसर अस्पताल के रोगियों-तीमारदारों सहित मलिन बस्तियों के लोगों का पेट भरता है। सामूहिक प्रयास का यह अति प्रेरक उदाहरण है।

फरीदकोट, पंजाब में माता खीवी जी लंगर सोसायटी के निर्देशन में इस मुहिम की शुरुआत 12 साल पहले हुई थी। शहर के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में पहुंचने वालों की सहायता के लिए इस सोसायटी को सेना की इंजीनियरिंग विंग से सेवानिवृत्त कैप्टन धर्म सिंह गिल ने शुरू किया था। लंगर के लिए पांच जिलों फरीदकोट, फिरोजपुर, मोगा, बठिंडा और श्रीमुक्तसर साहिब के 425 गांवों के लोग सहायता करते हैं। इन सैकड़ों गांवों से प्रतिदिन बारी-बारी से ताजा भोजन फरीदकोट पहुंचता है।

जनसहयोग की यह सहज, स्वस्फूर्त और सुंदर व्यवस्था सुखद आश्चर्य से भर देती है। 75 वर्षीय कैप्टन गिल ने दैनिक जागरण को बताया, बारह साल पहले मैंने इसकी शुरुआत इस अस्पताल में आने वाले रोगियों और उनके स्वजनों की पीड़ा को देखकर की थी। अस्पताल में उत्तर भारत के दूरदराज के क्षेत्रों से निर्धन लोग पहुंचते हैं। उन्हें भोजन के लिए भटकते हुए और इसके अभाव में कष्ट उठाते हुए देखा। तब सोचा कि कुछ व्यवस्था की जाए।

वह बताते हैं, वर्ष 2008 में मैंने अपने साथियों के साथ गांव मचाकी के घर-घर से भोजन लाकर अस्पताल के लोगों को उपलब्ध करवाना शुरू किया। उसके बाद धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और यह प्रयास आगे बढ़ता गया। मेडिकल कॉलेज से सटे गुरुद्वारा साहिबजादा अजीत सिंह चैरिटेबल सोसायटी के परिसर में लोग लंगर ग्रहण करते हैं। सिविल अस्पताल और निजी अस्पतालों में सुबह चाय-नाश्ता और दोपहर व शाम को भोजन उपलब्ध करवाया जाता है। शहर की मलिन बस्तियों और सड़क किनारे, पुल के नीचे जीवनयापन करने वाले अभावग्रस्त लोगों को भी प्रतिदिन भोजन उपलब्ध कराया जाता है।

उन्होंने बताया कि भोजन करने वालों का आंकड़ा प्राय: 12 हजार भी पार कर जाता है। अस्पताल के कैंसर विंग में बड़ी संख्या में रोगी उपचार के लिए आते हैं। दूर-दराज से आने वाले इन लोगों के रहने का प्रबंध भी माता खीवी जी लंगर सोसायटी कर रही है। इसके लिए छह हॉल बनाए गए हैं, जिनमें सौ लोगों के ठहरने की व्यवस्था है। कैप्टन गिल ने कहा, यूं तो विलंब नहीं होता है, किंतु मौसम के कारण या सुबह के समय गांवों से भोजन पहुंचने में यदि कुछ विलंब होता दिखे तो हम यहां पर भी भोजन तैयार कर लेते हैं।

रोटी बनाने के लिए मशीन लगाई गई है, जो कि एक घंटे में एक हजार रोटियां तैयार करती है। लॉकडाउन के दौरान लंगर कमेटी की 15 टीमों ने छह हजार से अधिक अतिरिक्त लोगों को उनके घरों तक दो महीने से अधिक समय तक भोजन पहुंचाया। इस दौरान विभिन्न गांवों से दोगुनी मात्र में भोजन बनकर आया।

प्रशंसनीय और प्रेरक उदाहरण

पांच जिलों के 425 गांव इसमें सहयोग करते हैं। प्रतिदिन 14 गांवों से ताजा भोजन भेजा जाता है। इस प्रकार सभी 425 गांव माहभर क्रमवार सहभागिता करते चलते हैं। गांवों में बनने वाले भोजन को शहर तक लाया जाता है।

एक दिन, एक रूट, 14 गांव

प्रतिदिन एक रूट पर पड़ने वाले औसतन 14 गांवों की बारी तय है। भोजन संकलित करके लाने के लिए फरीदकोट से सोसायटी की गाड़ियां गांंवों तक जाती हैं। चार गाड़ियों में 15 सेवादार सुबह से शाम तक क्रम से गांवों से भोजन एकत्र करके लाते हैं।

दिनभर चलता है क्रम

ऐसा समय निर्धारित किया गया है कि 14 गांवों से एक-एक कर दिनभर क्रम से भोजन आता रहता है। इससे लोगों को हर समय ताजा भोजन मिलता है।

साथ मिलकर बनाते हैं

अपने लिए निर्धारित की गई तिथि और समय पर गांव वाले मिलकर भोजन तैयार करते हैं। भोजन तैयार होने के बाद वे फोन कर सोसायटी को सूचित करते हैं। इसके बाद सेवादार गाड़ी लेकर गांव पहुंच जाते हैं।

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