कोरोना, फिर मौसम की मार से ‘झुलसा’ तेंदू पत्ता
बांदा। कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन के बीच बुंदेलखंड में लेटलतीफ तेंदू पत्ता की तुड़ाई शुरू हो गई। एक सप्ताह में सात हजार बोरा (26 फीसदी) पत्तों की तुड़ाई कर ली गई। हालांकि इस वर्ष पहले कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन और फिर मौसम की मार से तेंदू पत्ता तुड़ान का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा।
लॉकडाउन व मौसम की मार से लगभग 25 फीसदी पत्तों में कीड़े लग गए। दूसरी तरफ समय से तुड़ान न होने पर तेज धूप में सूख कर जमींदोज हो गए। प्रदेश में सर्वाधिक तेंदू पत्ता बुंदेलखंड में होता है। इन्हीं पत्तों से बीड़ी बनती है। सरकार ने इस वर्ष 25 हजार बोरा तेंदू पत्ता का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन अप्रैल में शुरू होने वाली तुड़ान लॉकडाउन के चलते डेढ़ माह देरी से शुरू हुई। इससे बड़ी संख्या में पत्ते पेड़ में ही सूखकर जमीन में गिर गए।
उधर, मौसम की मार से 25 फीसदी से अधिक पत्तों में कीड़े लग गए। ओलावृष्टि से पत्तों में छेद होने से इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इससे व्यापारी परेशान हैं। दूसरी तरफ लक्ष्य के अनुरूप तुड़ान न होने से सरकार को भी करोड़ों रुपये राजस्व की क्षति उठानी पड़ेगी।
बांदा में कालिंजर, नरैनी, बदौसा व फतेहगंज और चित्रकूट के जंगलों में तेंदू पत्ता ज्यादा होता है। सबसे ज्यादा राजस्व भी यहीं से प्राप्त होता है। वन निगम के कर्वी जोन के तेंदू पत्ता प्रबंधक एसके सिन्हा का कहना है कि 20 मई से तेंदू पत्ता की तुड़ान शुरू हुई है। इसमें 20 हजार श्रमिकों को लगाया गया है। 250 फड़ मुंशियों का चयन किया गया है। हालांकि यह लक्ष्य पिछले वर्षों की तुलना में दो हजार बोरा कम है लेकिन लॉकडाउन व पत्तों के खराब होने से यह लक्ष्य भी पूरा हो पाना मुश्किल लग रहा है। सात दिन की तुड़ान में 26 फीसदी यानी सात हजार बोरा पत्तों की ही तुड़ाई हो सकी है।
वन निगम के कर्वी जोन (तेंदू पत्ता) प्रबंधक एसके सिन्हा का कहना है कि तेंदू पत्ता तुड़ान में चित्रकूटधाम मंडल में करीब 10 हजार मजदूर लगे हैं। तुड़ान के बाद तेंदू पत्ता खरीद के लिए गांवों में 250 फड़ें खोली गई हैं। हालांकि पत्ता तुड़ान का यह लक्ष्य पिछले वर्षों की तुलना में दो हजार बोरा (20 लाख गड्डियां) कम है। अगले दस दिनों में तुड़ान समाप्त हो जाएगा। तेंदू पत्ता तुड़ान वन निगम नहीं कराता, बल्कि गांव के ही बाशिंदे अथवा मजदूर खुद पत्ता तोड़ते और उन्हें सुखाते हैं। फिर एक-एक हजार पत्तों की गड्डी बनाने के बाद वन निगम द्वारा खोले गए फड़ों में बेच देते हैं।
श्रमिक को एक बोरा यानी 1000 गड्डी की बिक्री पर 1220 रुपये मेहनताना दिया जाता है। तुड़ान समाप्त होने के बाद पत्तों की वन निगम बोली लगाता है। इसे बीड़ी कारोबारी खरीदते हैं। अधिकांश प्रयागराज और कानपुर के व्यापारी नीलामी में शामिल होते हैं। बुंदेलखंड के तीन जिलों बांदा, चित्रकूट और महोबा में तेंदू पत्ता तुड़ान से वन निगम को प्रति वर्ष 10 से 15 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है लेकिन इस वर्ष लॉकडाउन व पत्तों के खराब होने से लक्ष्य के अनुरूप पत्तों की तुड़ान संभव नहीं है। इससे सरकारी राजस्व को चार से पांच करोड़ के नुकसान का अनुमान जताया जा रहा है।
(यूएनएस)