शादी के एक दिन बाद ही ‘इकबाल’ की शूटिंग करने पहुंच गए थे Shreyas Talpade

श्रेयस तलपड़े वर्सेटाइल एक्टर हैं जिन्होंने हिंदी और मराठी दोनों सिनेमा में अपनी जबरदस्त प्रतिभा से लोकप्रियता हासिल की। यूं तो श्रेयस के करियर में कई ऐसी फिल्में हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है लेकिन इकबाल उन सबमें से अलग है। ये फिल्म कई मायनों में खास है। इस पर खुद बात की एक्टर ने हमसे।

26 अगस्त, 2005 को प्रदर्शित हुई नागेश कुकुनूर निर्देशित फिल्म ‘इकबाल’ में मूक बधिर लड़के की कहानी दिखाई गई है। इकबाल की मुख्य भूमिका निभाने वाले श्रेयस तलपड़े ने इस फिल्म की शूटिंग शादी के एक दिन बाद ही शुरू कर दी थी। फिल्म से जुड़ी तमाम यादें उन्होंने साझा की स्मिता श्रीवास्तव के साथ…

20 साल बाद भी लोग करते हैं याद
इस पर बात करते हुए श्रेयस ने कहा,‘इकबाल मेरे करियर की एक ऐसी फिल्म है, जिसने टेक्निकली मुझे बनाया। आज भी वह फिल्म प्रासंगिक है। उस वक्त लोग कहते थे कि हम ‘इकबाल’ देखकर बहुत प्रेरित हुए। आज लोग कहते हैं कि हमारे बच्चों ने देखी वो भी प्रेरित हुए। ‘आशाएं’ गाना आज भी सुनते हैं। 20 साल बाद भी अगर लोगों को फिल्म याद रहती है तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। मैं खुद भी बीच-बीच में वो फिल्म देखता हूं क्योंकि नागेश कुकुनूर ने फिल्म को बहुत खूबसूरती से बनाया है।’

फिल्म से एक दिन पहले हुई थी शादी
श्रेयस ने आगे कहा, ‘आज भी उस फिल्म की यादें ताजा हैं। यह मेरे लिए बहुत बड़ा अवसर होने के साथ बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी थी। एक दिन पहले मेरी शादी हुई थी। दूसरे दिन मैं ‘इकबाल’ की शूटिंग के लिए चला गया था। बहुत मिक्स फीलिंग थी कि शूट है, बहुत बड़ा अवसर है। कोशिश करनी है कि अच्छा काम करें। सुभाष घई निर्माता थे। किरदार के लिए काफी मेहनत थी। सुबह साढ़े चार बजे से उठने के बाद क्रिकेट मैच की प्रैक्टिस, फिर भैसों को चराने का अभ्यास, उन्हें नहलाना, फिर दूध दुहना। इसके साथ साइन लैंग्वेज का अभ्यास। उसको लेकर हमारी करीब 20 दिन की वर्कशाप हुई। फिर हमने शूटिंग आरंभ की। पहले दिन की शूटिंग में नागेश ने मेरे शाट्स हल्के-फुल्के ही रखे थे ताकि मैं किरदार में उतर सकूं। माहौल में घुल-मिल सकूं।

भैस की पैर ऊपर पड़ गया था
शूटिंग के दौरान मुझे आज भी याद है कि गलती से एक भैंस का खुर मेरे पैर के ऊपर पड़ गया था। उसके बाद मैं बहुत तेज चिल्लाया, लेकिन बहुत चोट नहीं पहुंची। लेकिन पहले दिन ही मुझे तैयार कर दिया था कि यहां मुझे बहुत अलर्ट रहना है। फिल्म में श्वेता बासु प्रसाद मेरी छोटी बहन बनी हैं। वह बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। उन्हें जो बताया जाता वो तुरंत सीख लेती थीं। साइन लैंग्वेज हम सबमें सबसे बेहतरीन कोई करता था तो वह श्वेता थीं। कई बार मैं और नसीरूद्दीन शाह सर अगर अटक जाते थे तो श्वेता से पूछते थे तो वह हमें करके दिखाती थीं। मुझे लगता है हम पर किसी प्रकार का बैगेज नहीं था। जब ऐसा होता है तो काम बहुत अच्छा निकलता है।

नंगे पांव करनी थी प्रैक्टिस
इस फिल्म मैं नंगे पांव काफी दिखा हूं। यह जनवरी की बात है। पहले दिन जब हैदराबाद एयरपोर्ट पहुंचा तो हमें लेने आई प्रोडक्शन की टीम ने कहा कि सर आप जूते उतार कर दे दीजिए, क्योंकि इकबाल बिना जूते-चप्पल के चलता है। अगर पहनेगा भी तो चप्पल,लेकिन गेंदबाजी नंगे पांव करेगा। आपको उसकी आदत होनी चाहिए नहीं तो तकलीफ होगी। ऐसी छोटी-छोटी चीजें अभ्यास के लिए हम करते थे ताकि मैं हर चीज में सहज दिखूं।

चुनौतीपूर्ण सीन को कैसे किया पूरा?
इस फिल्म में एक-दो सीन काफी चुनौतीपूर्ण थे। जैसे एक दिन हमें उगते सूरज का शाट चाहिए था। हम सुबह चार बजे ही पहुंच गए। उस शाट में मुझे एक जगह से दूसरी जगह भागना था, फिर भूसे पर चढ़कर अपने हाथों को उठाकर दांत भींचते हुए भावनाएं व्यक्त करनी थी। वार्मअप के बाद हम शुरू हुए तो दौड़ने की वजह से थोड़ी सी थकान हो गई थी। मैंने उस भूसे के ढेर पर चढ़ने की कोशिश की मगर ओस की बूंदों की वजह से थोड़ा फिसलन हो गई थी। तो नागेश सर ने चिल्लाकर कहा कि एक और शाट। ऐसा तीन-चार बार हुआ।

आखिरकार मैंने उसे करने की ठानी और तब जाकर हमें वो शाट मिला। इसी तरह आखिरी दिन का शूट था। मुझे एक प्वाइंट पर आकर ऊंची छलांग लगानी है। मगर छलांग लगाते वक्त मेरा पैर मुड़ गया। हमने बिना समय गंवाए फटाफट चोट पर बर्फ लगाई, कुछ स्प्रे किया। फिर मैंने उसी दर्द में भगवान का नाम लेकर शाट पूरा किया। उसके बाद मैं जोर से चिल्लाया!

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