श्रीलंका की संसद में 22वें संविधान संशोधन पर बहस शुरू

दिल्लीः श्रीलंका के संविधान में 22वें संशोधन को अंगीकार करने के लिए संसद की बहुप्रतीक्षित बहस सत्ताधारी एसएलपीपी पार्टी के कड़े विरोध के कारण दो बार स्थगित किए जाने के बाद बृहस्पतिवार को शुरू हुई। इस संशोधन का उद्देश्य कार्यकारी राष्ट्रपति के ऊपर संसद को सशक्त बनाना है। बहस पहले 6 अक्टूबर और 7 अक्टूबर के लिए तय की गई थी, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया क्योंकि प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने ने सदन को बताया कि सरकार विपक्ष के विचारों को ‘‘सार्थक’’ कवायद बनाने के लिए और अधिक चर्चा करेगी।

संसदीय अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को कहा कि संशोधन पर मतदान अब शुक्रवार को होगा। राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों की मांग के आगे झुकते हुए संवैधानिक सुधारों का वादा किया था। उग्र प्रदर्शनों के कारण विक्रमसिंघे के पूर्ववर्ती गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़नी पड़ी थी। संसद की शक्तियों को बहाल करने के लिए 22ए है, जिसे राजपक्षे ने 2020 के 20वें संशोधन के माध्यम से कार्यकारी राष्ट्रपति के अधीन कर दिया था। राजपक्षे ने 19ए को उलट दिया था जिसने संसद को राष्ट्रपति से ज्यादा सशक्त बनाया था। श्रीलंका की 225 सदस्यीय एसेंबली में केवल एक सीट वाले विक्रमसिंघे अपनी विधायी क्षमता के लिए श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) संसदीय समूह के समर्थन पर निर्भर हैं।

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इसे मंजूर करने के लिए संशोधन को 150 मतों से पारित किया जाना चाहिए। यह स्पष्ट नहीं है कि एसएलपीपी आवश्यक 150 वोट के लिए मतदान करवाएगी या नहीं। श्रीलंका की मुख्य विपक्षी पार्टी समागी जाना बालवेग्या (एसजेबी) ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 22वें संशोधन का समर्थन करेगी बशर्ते कि समिति स्तर पर कोई गुप्त संशोधन न किया जाए। विपक्ष के नेता सजिथ प्रेमदासा ने संशोधन विधेयक पेश किए जाने का स्वागत करते हुए कहा कि यह सही दिशा में एक छोटा कदम है। प्रेमदासा ने कहा, ‘‘हम 22ए को 20ए से थोड़ा बेहतर देखते हैं। यह एक सुधार है जिसे हमें देश में मौजूदा संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपेक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता है।’’

प्रेमदासा ने संसद को बताया कि पार्टी सद्भाव के तहत इस शर्त पर संशोधन विधेयक के लिए मतदान करेगी कि संसद में दोहरी नागरिकता वालों के प्रवेश पर विधेयक के प्रतिबंध को संशोधित करने का कोई प्रयास नहीं किया जाएगा। ना ही ढाई साल में संसद को भंग करने की राष्ट्रपति की शक्ति को बदलने का कोई प्रयास होना चाहिए।

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