धनतेरस पर दीपदान से पहले जान लें श्रीकृष्ण के नियम, होगा विशेष लाभ
Dhanteras 2022: हिंदू धर्म में दीपदान को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. धनतेरस के अलावा 13 अन्य ऐसे अवसर हैं, जिनमें दीपदान करना श्रेष्ठ माना गया है. धनतेरस पर तो दीपदान को यम के भय से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है. पर दीपदान के कुछ नियम भी हैं, जिनका पालन करना बहुत ज़रूरी है. विधि विधान से किया गया दीपदान ही व्यक्ति को मोक्ष का भागी बनाता है. आज हम आपको उन्हीं नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका जिक्र भविष्य पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है.
दीपदान की तिथि या समय
दीपदान यूं तो धनतेरस पर श्रेष्ठ माना गया है, लेकिन इसके अलावा अन्य 13 कालों में भी इसे किया जा सकता है. इनमें संक्रान्ति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, वैधृति, व्यतिपातयोग, उत्तरायण, दक्षिणायन, विषुव, एकादशी, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, तिथि क्षय, सप्तमी तथा अष्टमी को दीपदान का उल्लेख भविष्य पुराण में किया गया है. इसमें राजा युधिष्ठिर के सवालों का जवाब देते हुए खुद भगवान श्रीकृष्ण ने दीपदान की तिथि व विधि बताई है.
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कैसे करें दीपदान
भविष्य पुराण में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि दीपदान के लिए तय पुण्य दिनों में व्रत परायण स्त्री या पुरुष को पहले स्नान करना चाहिए. इसके बाद देवताओं का पूजन करते हुए अपने आंगन के बीच घृत कुंभ यानी घी का पात्र और जलता हुआ दीपक रखते हुए उसका दान करना चाहिए. भूमि देव या अन्य देवताओं के प्रदत्त दीपदान रंग को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए. दीपक घी या तेल का ही जलाना चाहिए. वसा, मज्जा आदि तरल द्रव्य वाले दीपक नहीं जलाने चाहिए. जलते हुए दीपक को बुझाना या हटाना भी नहीं चाहिए. भविष्य पुराण के अनुसार, दीप बुझा देने वाला काना होता है और दीप को चुराने वाला अंधेपन का शिकार हो सकता है. दीप को बुझाना निंदनीय है.
दीपदान से मिलता है स्वर्ग
दीपदान से यम के भय से मुक्ति मिलने के साथ व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. भविष्य पुराणा में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो पूरे विधि विधान से दीपदान करता है, वह लोक में तेजोमय शरीर की प्राप्ति करता है और मृत्यु होने पर सुदंर तेजस्वी विमान में बैठकर स्वर्ग जाता है. जहां वह सृष्टि के प्रलय काल तक रहता है.