क्या होती है ये डाक कांवड़ यात्रा ? कैसे यह बाकी कांवड़ से है अलग ?

दिल्लीः सावन महीने (Sawan Month) में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) का अपना महत्व है. इस समय सड़कों पर कांवड़ यात्रा करने वालों का हुजूम देखने को मिल रहा है. भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए भक्त दूर दराज से गंगा नदी से कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं. श्रावण मास में भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाने से वे अति प्रसन्न होते हैं. कांवड़ यात्रा भी कई तरह की होती हैं और सबके अलग- अलग नियम होते हैं. आइये जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से डाक कांवड़ क्या है और यात्रा से जुड़े नियम कायदे क्या हैं?

सावन माह में दूर दराज से लोग कांवड़ लेकर आते हैं. यात्रा लंबी होने के कारण शिव भक्त बीच-बीच में विश्राम भी करते हैं. इसके बाद फिर से कांवड़ लेकर यात्रा शुरू करते हैं और शिवालय में पहुंचकर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं. लेकिन डाक कांवड़ अन्य कांवड़ यात्रा से अलग है. डाक कांवड़ यात्रा लंबी होने के साथ ही कठोर भी होती है.

डाक कांवड़ का नियम है कि जब एक बार कांवड़ उठा लिया जाता है, तो फिर लगातार यात्रा करनी होती है. डाक कांवड़ यात्रा में आप विश्राम नहीं कर सकते. आपको लगातार यात्रा करनी पड़ती है. डाक कांवड़ यात्रा में आपको एक तय समय में भगवान शिव का जलाभिषेक करना होता है. यात्रा के समय मल-मूत्र तक नहीं किया जाता है. डाक कांवड़ में नियमों की अवहेलना से यात्रा खंडित हो जाती है.

अधितकर भक्त ग्रुप में डाक कांवड़ यात्रा ​करते हैं. इस दौरान जब शिव भक्त हरिद्वार, नीलकंठ से कांवड़ लेकर यात्रा शुरू करते हैं, तो बीच- बीच में एक दूसरे के कांवड़ की अदला-बदली करते हैं. साथ ही, कुछ भक्त गाड़ियों के जरिये भी डाक कांवड़ यात्रा करते हैं, ताकि तय समय में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जा सके.

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