चंद्रमा की सतह साफ बताती है, यहां उल्कापिंडों की लंबे समय तक बारिश हुई होगी

दिल्लीः खगोलीय अध्ययन में हमारी पृथ्वी का चंद्रमा (Moon) कम रोचक विषय नहीं है. इसकी कई विशेषताएं वैज्ञानिकों को चौंकाती हैं और पृथ्वी और सौरमंडल के इतिहास की पड़ताल में चंद्रमा का इतिहास भी एक अहम हिस्सा है. चंद्रमा की आज की सतह के अवलोकन भी कई अहम संकेत देते हैं. इसमें एक संकेत है की चंद्रमा पर हुई उल्कापिंडों, क्षुद्रग्रहों आदि की बारिश (Bombardment on Moon) जिसके बारे में माना जाता है कि यह बहुत लंबे समय तक चली प्रक्रिया रही होगी. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि चंद्रमा की पर्पटी की सरंध्रता (Porosity of Moon Crust) इस इतिहास के बारे में काफी कुछ बता सकती है.

टकराव का लंबा इतिहास
फिलहाल माना जाता है कि 4.4 अरब साल पहले से 3.8 अरब साल पहले तक चंद्रमा पर क्षुद्रग्रह, उल्कापिंड आदि की बारिश होती रही थी. जिससे चंद्रमा की सतह पर क्रेटर, दरारें और छिद्रित पर्पटी का निर्माण हुआ था. अब एमआईटी के वैज्ञानिकों ने पाया है कि चंद्रमा की पर्पटी की सरंध्रता चंद्रमा का इतिहास के उस हिस्से के बारे में काफी कुछ जानकारी दे सकती है.

चंद्रमा की पर्पटी की सरंध्रता
नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सिम्यूलेशन के जरिए पता लगाया है कि उल्कापिंडों की बारिश के उस दौर में चंद्रमा की पर्पटी में सरंध्रता या छिद्रता बहुत ही ज्यादा थी और इसकी वजह यही थी की पर्पटी विशाल टकरावों की वजह से टुकड़े टुकड़े हो कर बिखर गई थी. वैज्ञानिकों ने पहले यह माना था कि लगातार हो रहे टकरावों ने धीरे धीरे इस सरंध्रता को बनाने में योगदान दिया था. लेकिन इस अध्ययन में इस बारे में कुछ और पता चला है.

धीमे नहीं बल्कि तेजी से
शोधकर्ताओं को चौंकाने वाली बात यह पता चली की चंद्रमा की लगभग पूरी की पूरी सरंध्रता बहुत तेजी से बनी थी. इतना ही नहीं बाद में हुए टकरावों ने यहां की सतह को थोड़ा ठोस करने का काम भी किया जिससे उसकी सरंध्रता कुछ कम भी हुई थी. इसी वजह से बाद से में चंद्रमा की सतह पर दरारें और स्तरभ्रंश देखने को मिले थे.

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker