देहरादून में नया विधानसभा भवन रायपुर क्षेत्र में बनाने की कवायद ठंडी पड़ी

दिल्लीः राजधानी के रायपुर क्षेत्र में विधानसभा भवन और सचिवालय बनाने के नाम पर पिछले दस सालों में करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद ये मामला ठंडे बस्ते में चला गया है. इसे आर्थिक कारण कहें या सियासी मजबूरी, फरवरी 2020 के बाद ये फाइल करीब-करीब बंद कर दी गई. एक तरफ सरकार के आला चेहरे इस भवन की ज़रूरत तो बता रहे हैं, लेकिन सरकार अगर इस निर्माण की ओर कदम बढ़ाती है, तो यह विपक्ष और जनता की नाराज़गी मोल लेने वाला जोखिम ही होगा इसलिए यह फाइल अटकी पड़ी है.

रायपुर क्षेत्र में विधानसभा भवन और सचिवालय बनाने के लिए 2012 में 60 हेक्टेयर वन भूमि का चयन किया गया. इसके तहत वन भूमि हस्तांतरण के लिए वन विभाग में 2017 में साढ़े सात करोड़ रुपये भी जमा किए गए. केंद्र से फर्स्ट फेज़ की सैद्धांतिक स्वीकृति भी मिली और बाद में कंपनसेट्री एफोरेस्ट्रीशन की भी करोड़ों की रकम जमा की गई. मामला अब एलिफेंट कॉरिडोर के कुछ हिस्से को लेकर फंसा है. इसके लिए राज्य संपत्ति विभाग को 15 करोड़ की राशि जमा करनी है, लेकिन फाइल दो सालों से संपत्ति विभाग में ही अटकी पड़ी है.

फॉरेस्ट चीफ विनोद सिंघल का कहना है ‘2017 में करीब साढ़े 7 करोड़ वन भूमि का मूल्य चुकाने के बाद सैद्धांतिक स्वीकृति मिल गई थी. अब राज्य सरकार कॉरिडोर बनाने का पैसा जमा करती है, तो इसे जल्द ही फाइनल एप्रूवल मिल सकता है.’ लेकिन नये भवन की बात क्या रकम पर ही अटकी है? इसे आगे समझते हैं, पहले तो सवाल यह है कि नये भवन की आखिर ज़रूरत ही क्यों है?

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