हरिणी लोगन ने जीता स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता का ख़िताब : वाशिंगटन

दिल्लीः भारतीय मूल की टीनएजर हरिणी लोगन ने साल 2022 का स्क्रिप्स नेशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता का खिताब जीत लिया है। हरिणी 14 साल ही हैं और अमेरिका के टेक्सास से संबंध रखती हैं। हरिणी ने 90 सेकंड के स्पेल-ऑफ में ऐतिहासिक रूप से 26 में से 22 शब्दों की सही स्पेलिंग बताकर 2022 की स्क्रिप्स नैशनल स्पेलिंग बी प्रतियोगिता जीत ली है। उन्होंने सबसे आखिर में Moorhen शब्द की स्पेलिंग बताई थी। करीब ढाई दशक से स्पेलिंग बी प्रतियोगिता में भारतीय मूल के बच्चों का वर्चस्व रहा है। आखिर इसकी वजह क्या है?

एक फीसदी से कम है मौजूदगी

अमेरिका में भारतीय मूल के छात्रों की जनसंख्या 1 फीसदी से भी कम है। लेकिन फिर भी इस स्पेलिंग कॉम्पिटिशन के फाइनल में क्वॉलिफाई करने वाले 300 छात्रों में से हर साल 60 से भी ज्यादा भारतवंशी होते हैं। 1985 में बालू नटराजन स्पेलिंग बी जीतने वाले भारतीय मूल का पहला बच्चा था। लेकिन उसके बाद से हर साल इस प्रतियोगिता में भारतीय मूल के छात्रों की भागीदारी बढ़ती चली जा रही है। साल 1999 में जब नूपुर लाला विजेता बनी थीं तो 17 फाइनलिस्ट में 13 भारतवंशी थे।

भारतीय छात्रों का दबदबा

1999 में नुपुर लाला के इस प्रतियोगिता के जीतने के बाद 2000 में जॉर्ज थंपी, 2002 में प्रत्युष बुद्दिगा, 2003 में साईं गुंतुरी, 2005 अनुराग कश्यप और 2008 में समीर मिश्रा के जीतने के बाद से 2022 तक बस बार भारतीय मूल के छात्रों के हाथ से यह ट्रॉफी छूट पायी है। यानी कि 1999 के बाद से बस पांच बार ऐसा हुआ जब भारतीय मूल के छात्र यह ट्रॉफी नहीं जीत पाए हैं। आखिर भारतीय मूल के छात्रों के लगातार इस ट्रॉफी को जीतने की मुख्य वजह क्या है?

IQ लेवल

चूंकि अधिकांश भारतीय मूल के छात्रों ने स्पेलिंग बी प्रतियोगिता जीत रखी है इसलिए अब ये प्रतियोगिता को जीतना भारतीय मूल के छात्रों के लिए चैलेंज का विषय बन जाता है। अधिकतर बार विजेता होने के कारण भारतवंशी बच्चों का पहले से भी मोरल हाई रहता है। इसके साथ ही बच्चों को इस प्रतियोगिता को जीतने में अभिभावक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय परिवार में लोगों का आपसी संबंध बेहद मजबूत होता है। अपने बच्चों को स्पेलिंग बी जिताने के लिए मां-बाप ही नहीं, पूरा परिवार लग जाता है। कहा जाता है कि इस प्रतियोगिता को जीतने के लिए जीतनी मेहनत एक छात्र करता है, उतनी ही मेहनत उसके अभिभावक भी करते हैं।

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