जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने के पीछे समझिये अखिलेश यादव का फार्मूला

दिल्लीः कांग्रेस के सीनियर नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को लखनऊ पहुंचकर जब राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन किया तो कयास लगने लगे कि अब अगला नंबर डिंपल यादव का है। जयंत चौधरी को लेकर कहा गया कि उनसे अखिलेश यादव की बात नहीं हुई और दोनों नेताओं के बीच अनबन है। लेकिन गुरुवार सुबह इन कयासों ने उस वक्त दम तोड़ दिया, जब सपा ने जयंत चौधरी की उम्मीदवारी का ऐलान किया। इसके साथ ही पार्टी ने बताया कि चौधरी चरण सिंह की विरासत वाले जयंत चौधरी आरएलडी और सपा के संयुक्त उम्मीदवार होंगे। अब सवाल यह है कि आखिर अखिलेश यादव ने क्यों डिंपल यादव की कीमत पर जयंत चौधरी के नाम पर सहमति जता दी।

यूपी की सियासत को समझने वाले मानते हैं कि इस फैसले के जरिए अखिलेश यादव ने कई संकेत दिए हैं। कपिल सिब्बल के तौर पर एक उच्च जाति से और जावेद अली के तौर पर मुस्लिम नेता को पार्टी ने पहले ही राज्यसभा भेजने का फैसला लिया था। लेकिन ओबीसी चेहरे की कमी थी, जिसे जयंत चौधरी के तौर पर पूरा करने की कोशिश की गई है। यही नहीं यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे में कई ऐसी सीटों से सपा ने अपने उम्मीदवारों को उतारा था, जिन्हें आरएलडी के गढ़ के तौर पर देखा जाता रहा है। इस पर जाट बिरादरी के एक तबके ने नाराजगी जाहिर की थी। यही नहीं जाट बहुल सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को लेकर तो तीखा विरोध भी देखने को मिला था।

अब एक बार फिर से जावेद अली को राज्यसभा भेजने और जयंत चौधरी को मौका न देने से गलत संदेश जाता। ऐसे में अखिलेश यादव ने जावेद अली के साथ ही जयंत चौधरी को भी मौका दिया है ताकि गलत संदेश न जाए। इसके अलावा जाट और मुस्लिम वोटबैंक के बीच जो एकता स्थापित करने का प्रयास किया गया था, उसे भी इसके जरिए बल दिया जाएगा। वहीं गैर-यादव ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ाने के एजेंडे पर भी जयंत चौधरी फिट बैठते हैं। अखिलेश यादव को लेकर यह भी कहा जाता रहा है कि वह अपने सहयोगियों को ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। अब जयंत के जरिए वह इन आरोपों का भी अंत करने का प्रयास करेंगे।

एक तरफ जयंत चौधरी को अखिलेश यादव ने राज्यसभा भेजने का फैसला लिया है तो वहीं पार्टी के आंतरिक सूत्रों के मुताबिक पत्नी डिंपल के लिए भी प्लान तैयार है। कहा जा रहा है कि डिंपल यादव को वह आजमगढ़ से लोकसभा उपचुनाव में उतार सकते हैं, जहां से उन्होंने इस्तीफा दिया है। अखिलेश यादव ने मैनपुरी की करहल सीट से विधानसभा चुनाव जीता था और उसके बाद आजमगढ़ से इस्तीफा दिया था। इसके पीछे वजह यह थी कि वह विधानसभा में योगी सरकार को घेरते हुए फ्रंटफुट पर नजर आना चाहते थे। अब डिंपल आजमगढ़ जाएंगी तो उनकी नजर गढ़ बचाने पर होगी। वहीं अखिलेश यादव लखनऊ की राजनीति में सपा को ताकत देते रहेंगे।

गौरतलब है कि 15 राज्यों में राज्यसभा की 57 सीटों के लिए 10 जून को चुनाव होने वाला है। अकेले यूपी ही राज्यसभा में 31 सदस्य भेजता है, जिनमें से 11 का रिटायरमेंट 4 जुलाई को होने वाला है। इनमें 5 सदस्य भाजपा के हैं, तीन समाजवादी पार्टी के और दो बीएसपी के हैं। इसके अलावा एक सदस्य कांग्रेस का है। बीएसपी और कांग्रेस इस बार एक भी उम्मीदवार को जिताने की स्थिति में नहीं हैं।

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