विश्वविद्यालयों को नए सत्र में भी नहीं मिलेंगे असिस्टेंट प्रोफेसर, चयन होने के बाद योगदान भी नहीं
दिल्लीः बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने अक्टूबर 2020 में अलग-अलग विषयों में कुल 4638 असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। लगभग डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी आयोग अब तक अपनी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया है। पिछले साल दैनिक भास्कर से बातचीत में आयोग के चेयरमैन राजवर्धन आजाद ने कहा था कि इसी साल यानी 2021 में ही नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। लेकिन सच यह है कि आयोग अब तक 52 विषयों में लगभग 18 विषयों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर पाया है। जिन विषयों की नियुक्ति प्रक्रिया अब तक पूरी की गई है। उनमें कोई बड़ा विषय नहीं है।
आयोग के चेयरमैन और सदस्यों का कार्यकाल फरवरी व मार्च में समाप्त हो चुका है लेकिन सरकार ने इन सभी को 30 जून तक का सेवा विस्तार दे दिया है। आयोग के चेयरमैन और सदस्य ने अपने 3 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया था। गठन के लगभग एक साल तक तो आयोग पूरी तरह से निष्क्रिय ही रहा। समय पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियमावली नहीं बनने के साथ रिक्त पदों की जानकारी आयोग को नहीं मिलने के कारण आयोग की सभी गतिविधियां काफी धीमी रहीं।
आयोग में सरकार ने अधिकारियों और कर्मचारियों के 52 पद स्वीकृत किए हैं। लेकिन जानकारी है कि इतने अधिकारी व कर्मचारी आयोग को अब तक उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। आउटसोर्सिंग के जरिए ही लगभग सारी प्रक्रियाएं पूरी की जा रही हैं। कोरोना महामारी की वजह से भी देर हुई है। इस सब के बीच अब तक एक भी मुख्य विषय का इंटरव्यू नहीं होने से अभ्यर्थियों की परेशानी बढ़ गई है। हद यह कि जिन विषयों के अंतिम परिणाम घोषित कर दिए गए हैं उनमें से किसी विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति संबंधित विश्वविद्यालय में नहीं हो पाई है। इसके पीछे के कारण को कोर्ट के मामले से जोड़ कर देखा जा रहा है।
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी संजीव सिंह से भास्कर ने बात की। वे कहते हैं कि 4638 पद तो तीन साल पहले आंकलित किए गए थे। तब से अब तक हजारों शिक्षक रिटायर हो गए। दूसरी तरफ विश्वविद्यालय सेवा आयोग से हो रही नियुक्ति की प्रक्रिया काफी धीमी है। जो भी प्रक्रिया चल रही है वह छोटे विषयों के लिए ही चली है। सरकार को अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में तेजी लानी चाहिए साथ ही विश्वविद्यालय सेवा आयोग को नियुक्ति प्रक्रिया में सुस्ती छोड़नी चाहिए। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की काफी कमी है जिससे पढ़न-पाठन प्रभावित हो रहा है। इन पदों के अभ्यर्थियों के सब्र की भी सीमा है।
भागलपुर विश्वविद्यालय में स्नात्कोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. योगेन्द्र से भास्कर ने बात की। उन्होंने बताया कि अंगिका में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयनित अभ्यर्थी अब तक नियुक्ति नहीं हुए हैं जबकि काफी पहले विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने इनका चयन कर लिया है। यह अनुशंसा भेजने से जुड़ा मामला है। वे कहते हैं कि भागलपुर विश्वविद्यालय के हिंदी स्नातकोत्तर विभाग में शिक्षक के सात पदों में से दो ही रह गए हैं। हद यह कि जिन वषयों में ऑनर्स के शिक्षक ही नहीं हैं वहां छात्र-छात्राएं ऑनर्स की पढ़ाई कर रहे हैं और उनका रिजल्ट भी आ रहा है। उच्च शिक्षा शिक्षकों और कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर कमी के कारण बर्बाद हो रही है। एक वेकेंसी में चार-पांच साल का समय लग रहा इससे सरकार की उच्च शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता दिख रही है।
बिहार लोक सेवा आयोग ने भी अक्टूबर 2014 में असिस्टेंट प्रोफेसर के 3334 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। उसकी भर्ती प्रक्रिया 8 सालों में भी अब तक पूरी नहीं हो पाई है। अभ्यर्थियों का मानना है कि अगर विश्वविद्यालय सेवा आयोग भी बिहार लोक सेवा आयोग की तरह ही इस तरह की वेकेंसी में कार्य करता रहा तो फिर इसका क्या मतलब !