गणतंत्र में गण का यह सूरतेहाल हैं
नेत्रहीन दम्पति मासूम बच्चों संग फटेहाल हैं
– शहर बाँदा में गरीबी की यह जमीनी सच्चाई हैं।
– दिव्यांग योजनाओं के लाभार्थी पतिपत्नी बच्चों संग भीख मांगने को मजबूर।
-शहर में चकाचौंध और रंजीत की दुनिया में अंधेरा है।
– दिनभर नए ओवरब्रिज पुल पर बैठकर यह परिवार भीख मांगता हैं।
– कांशीराम कालोनी हरदौली घाट का रहवासी हैं रंजीत का परिवार।
– पति को 500 रुपया महीना विकलांग पेंशन मिलती हैं लेकिन पत्नी को नहीं।
-इस महगांई के विकट संकट में 500 रुपये महीना पर एक परिवार का भरणपोषण।
-कहाँ हैं माननीय की कृपा, प्रशासन की दया और सरकार का रहमोकरम।
-दूधमुँहे अबोध बच्चों के संग नेत्रहीन मातापिता भीख मांग रहा।
बाँदा। गरीबों की रहनुमाई में दम्भ भरने वाले प्रशासन और सरकार की हकीकत देखनी हो तो यह खबर नजीर हैं। शहर के कांशीराम आवासीय योजना हरदौली घाट के ब्लॉक 54 रहवासी नेत्रहीन दंपति परिवार के गृहस्वामी रंजीत रोजाना भीख मांगने को बेबस हैं। यह बेबसी भी ऐसी जो दूधमुंहे मासूम बच्चों की कोमल हथेलियों से भी भीख मंगवा लेती हैं।
पति और पत्नी दोनों की आंखों में अंधेरा है। वहीं नन्ही आंख से फरेबी दुनिया को भौचक निहारने वाले तीन मासूम बच्चों के सामने भविष्य की स्याह परतें हैं। शहर बाँदा के नए ओवरब्रिज पुल में धूप हो या रात्रि की सिलवटें, बारिश की फुहारों में यह गरीब परिवार रोजाना सड़क किनारे बैठकर रोजीरोटी का इंतजाम करता हैं।
गौरतलब हैं कि पति-पत्नी दोनों आंख से अंधे हैं तो सड़क पर घूमकर भीख नहीं मांगते हैं। वहीं बिना मांगे जो मिल गया वो उनकी पेट की आग बुझाता हैं।
सरकारी योजना का लाभ
नेत्रहीन रंजीत पत्नी समेत कई वर्ष से भीख मांग रहे है। ईश्वर ने आंख का उजाला नहीं दिया तो दूसरा रोजगार कहाँ से मयस्सर हो यह बड़ा सवाल है ? वाइस आफ बुंदेलखंड संवाददाता के सवाल पूछने पर रंजीत बतलाते है कि उन्हें कांशीराम योजना में आसरा मिला है लेकिन आजीवका के नाम पर मुझे 500 रुपया महीना विकलांग पेंशन ही मिलती हैं। पत्नी के नाम अभी पेंशन नहीं बनी है। तीन अबोध बच्चों के साथ पतिपत्नी एक माह का गुजारा कैसे करते होंगे यह उत्तर प्रशासन और सरकार दोनों को देना चाहिए।
नेत्रहीन रंजीत पत्नी समेत कई वर्ष से भीख मांग रहे है। ईश्वर ने आंख का उजाला नहीं दिया तो दूसरा रोजगार कहाँ से मयस्सर हो यह बड़ा सवाल है ? वाइस आफ बुंदेलखंड संवाददाता के सवाल पूछने पर रंजीत बतलाते है कि उन्हें कांशीराम योजना में आसरा मिला है लेकिन आजीवका के नाम पर मुझे 500 रुपया महीना विकलांग पेंशन ही मिलती हैं। पत्नी के नाम अभी पेंशन नहीं बनी है। तीन अबोध बच्चों के साथ पतिपत्नी एक माह का गुजारा कैसे करते होंगे यह उत्तर प्रशासन और सरकार दोनों को देना चाहिए।
शहर के माननीय और समाजसेवी कहाँ हैं
रंजीत कहते है दो लॉक डाऊन से हम बेहद मुसीबत के दौर में है। लॉक डाऊन लगा तो गाहे बगाहे राशन मिल गया लेकिन आज वह भी मुहैया नहीं हैं। बड़ी बात है बसपा सरकार में कांशीराम आवासीय योजना ने जहां आंशिक तौर पर गरीबों को आवास दिए वहीं बाँदा यह योजना बड़े भ्रस्टाचार का अड्डा बन गई थी।
रंजीत कहते है दो लॉक डाऊन से हम बेहद मुसीबत के दौर में है। लॉक डाऊन लगा तो गाहे बगाहे राशन मिल गया लेकिन आज वह भी मुहैया नहीं हैं। बड़ी बात है बसपा सरकार में कांशीराम आवासीय योजना ने जहां आंशिक तौर पर गरीबों को आवास दिए वहीं बाँदा यह योजना बड़े भ्रस्टाचार का अड्डा बन गई थी।
आज भी रंजीत सरीखे वाजिब दिव्यांग और बेसहारा परिवार आवास योजना से महरूम हैं। वहीं उन्हें दिव्यांग पेंशन योजना व दूसरी योजनाओं के लाभ ज़मीन पर नहीं मिलते है। सवाल यह कि शहर बाँदा में तमाम एनजीओ व समाजसेवी हैं। वहीं माननीय भी प्रचार के भूखे रहते है तब लॉक डाऊन में राशन वितरण और अन्य की मदद देते हुए फ़ोटो वायरल करने वाले सभ्रांत लोग कहाँ हैं ?
कहते है नेकी कर दरिया में डाल अर्थात बाएं हाथ से दान करो तो दाएं को खबर न हो यह पहले कभी होता था लेकिन यह बात अब ख्याली हो चुकी हैं। फिलहाल वक्त इन्हें मदद की बेहद ज़रूरत हैं। प्रशासन व माननीय नेताओं को चाहिए की रंजीत के परिवार की सतही स्थाई आजीवका सुनिश्चित करें। वहीं ऐसे दृश्य उजागर न हो यह सनद रहना चाहिए।