चीन पर सख्ती

विश्वव्यापी कोरोना महामारी के बीच दो साल बाद हुए दुनिया के अमीर मुल्कों के जी-7 समूह सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी है कि दुनिया में कोरोना संकट दूर करने के लिये साझे प्रयास किये जाएंगे। साथ ही चीन के निरंकुश साम्राज्यवाद पर अंकुश लगाने तथा कोरोना उत्पत्ति की सच्चाई सामने लाने पर भी सहमति बनी।

अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा, जापान जैसे विकसित देशों के इस समूह ने गरीब मुल्कों को एक अरब वैक्सीन देने के संकल्प के साथ स्वीकार किया कि दुनिया में इस संकट पर काबू पाने के बाद ही वैश्विक अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट पायेगी। बहरहाल, संगठन के देशों में इस बात का उत्साह देखा गया कि अमेरिका की सक्रियता फिर से बढ़ी है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पहली विदेश यात्रा पर जी-7 सम्मेलन में भाग लेने ब्रिटेन पहुंचे। सम्मेलन कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण तेज करने, जलवायु परिवर्तन रोकने में अपने हिस्से की बड़ी राशि देने तथा तकनीकी सहयोग बढ़ाने के निर्णय के साथ संपन्न हुआ। दरअसल, इस सम्मेलन को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि सम्मेलन के बाद जो बाइडन ब्रसेल्स में नाटो मुख्यालय में आयोजित बैठक में भाग लेने के बाद बुधवार को जिनेवा में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे।

बहरहाल, सम्मेलन में चीन को कई मुद्दों पर घेरने की तैयारी हुई। कोरोना वायरस की उत्पत्ति से लेकर शिनजियांग प्रांत तथा हांगकांग में मानवाधिकार अधिकारों के हनन पर चीन की आलोचना की गई। आज जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैलाने में चीन की भूमिका को संदिग्ध रूप में देखा जा रहा है तो सम्मेलन में वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये नये अध्ययन की मांग की गई। संगठन ने मांग की कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये विज्ञान आधारित पारदर्शी जांच नये सिरे से करे। अब डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक भी जांच के दूसरे चरण की ओर बढ़ने की बात स्वीकार रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 सम्मेलन में वर्चुअली भाग लिया और ‘वन अर्थ, वन हेल्थ’ का मंत्र दिया। एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के नारे के जरिये भविष्य की स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का मुकाबला करने की बात कही गई, जिसका मकसद भविष्य में महामारियों की आशंका की चुनौती से निपटने के लिये रणनीति तैयार करने पर बल देना था।

इसके लिये वैश्विक एकजुटता और नेतृत्व के बीच जरूरी तालमेल की आवश्यकता पर बल दिया गया, जिसका निष्कर्ष यह भी है कि महामारियों का मुकाबला कोई अकेला देश नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री के प्रस्ताव का कुछ विकसित देशों ने समर्थन भी किया। इसमें दो राय नहीं कि कोरोना संकट में वैश्विक संस्थाओं की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे हैं, जिसने गरीब व विकासशील देशों की उम्मीदों पर पानी फेरा है।

खासकर भारत व दक्षिण अफ्रीका द्वारा कोरोना वैक्सीन को पेटेंट मुक्त करने के लिये विश्व व्यापार संगठन को की गई अपील को गंभीरता से नहीं लिया गया। वहीं दूसरी ओर भारत जैसे बड़े टीका उत्पादक देश को टीके के निर्माण में उपयोग होने वाली कच्ची सामग्री न मिलने से गरीब मुल्कों को टीका मिलने में देरी हो रही है।

प्रधानमंत्री ने वैश्विक संस्थाओं की इन्हीं कमियों की ओर दुनिया का ध्यान खींचने का प्रयास किया, जिसके चलते दुनिया के गरीब व विकासशील देशों ने सीमित चिकित्सा संसाधनों के बूते कोरोना संकट का मुकाबला किया। निस्संदेह, ऐसी महामारियों का मुकाबला दुनिया की एकजुटता के बिना नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा सम्मेलन में जी-7 के देशों ने चीन की अनैतिक आर्थिक गतिविधियों का मुकाबला करने के लिये एकजुटता पर बल दिया, जिसके लिये चीन की बाजार निर्देशित अर्थव्यवस्था के मुकाबले को नैतिक व मूल्यों आधारित आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया, जो निष्पक्ष और पारदर्शी हों। दरअसल, चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ यानी बीआरआई योजना के मुकाबले के लिये अमेरिका समर्थित ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ प्लान लाने की बात हुई, जिससे चीन के आर्थिक साम्राज्यवाद पर अंकुश लगाने में मदद मिल सके।

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