अनलॉक
पहली लहर के खात्मे और टीकाकरण अभियान की शुरुआत के बाद सार्वजनिक जीवन में नागरिकों के स्तर पर और भविष्य की तैयारी को लेकर सरकारों के स्तर पर जो चूक हुई, उसकी पुनरावृत्ति नहीं की जानी चाहिए। भले ही देश में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा एक लाख से कम हो गया है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि यह आंकड़ा बीते सितंबर में पहली लहर के शिखर के आसपास ही है।
ऐसे में हमें पिछली चूक को दोहराने से बचने की जरूरत है। हमने बीते अप्रैल-मई में व्यवस्था की विसंगतियों तथा सामाजिक स्तर पर लापरवाही का खमियाजा भुगता है। ऐसे में जब कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र और दिल्ली समेत कई राज्यों में अनलॉकिंग की प्रक्रिया शुरू हुई है तो हमें बुरे अनुभवों के सबक जरूर सीखने चाहिए। यह समझते-बूझते हुए कि देश में कोरोना संकट अभी टला नहीं है।
कोरोना की लड़ाई में विशेषज्ञ राय देने वाले एम्स दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया और नीति आयोग के सदस्य वी.के. पॉल कह रहे कि भविष्य में आने वाली संक्रमण की लहर की आशंकाओं को दूर करने में कोविड-रोधी व्यवहार की बड़ी भूमिका रहेगी।
वही बातें जो पिछले सवा साल से दोहरायी जा रही हैं कि ठीक से मास्क पहनें, शारीरिक दूरी और भीड़ से बचाव। ये सावधानी कुछ समय और हमें अपनानी होगी, जब तक कि लक्षित आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता।
अच्छा होगा जहां एक नागरिक के रूप में हमारी सजगता बनी रहे, वहीं सरकार के स्तर पर भविष्य में किसी चुनौती के मद्देनजर स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार व सुधार को प्राथमिकता बनाया जाये। साथ ही परीक्षण व टीकाकरण को तेजी प्रदान की जाये।
कोशिश हो कि सार्वजनिक स्थलों पर एंटीजन टेस्ट की सुविधा सरलता से उपलब्ध हो सके। इससे हम कोविड-पॉजिटिव लोगों को समय रहते अलग करके संक्रमण के जोखिम को कम कर सकते हैं। साथ ही बेहद सावधानी से राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक आयोजनों को अनुमति देनी होगी, ताकि वे सुपर स्प्रेडर्स की भूमिका न निभा सकें।
निस्संदेह, एक साल से अधिक समय से हम सामान्य जीवन नहीं जी पाये हैं। अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी है। करोड़ों लोगों के रोजगार पर संकट मंडराया है। ऐसे में हमारा सामाजिक व्यवहार जीवन को सामान्य बनाने के लिये जिम्मेदारी वाला होना चाहिए।
हमें खुद ही बड़ी भीड़-भाड़ वाले मॉल व बाजारों में जाने में सतर्कता बरतनी होगी। हमें इन्हीं परिस्थितियों में जीवन को सामान्य बनाने की कोशिश करनी होगी। यह अच्छी बात है कि हम सीमित संसाधनों के बावजूद कोरोना की दूसरी लहर से उबर रहे हैं।
याद रहे कि दुनिया की एक नंबर की महाशक्ति तमाम संसाधनों व आधुनिक चिकित्सा सुविधा के बावजूद कोरोना संक्रमण और मौतों के मामले में हम से आगे है। सरकारों का दायित्व तो पहले है ही, एक नागरिक के रूप में हमारा व्यवहार भी जिम्मेदारी वाला होना चाहिए।
अनलॉक की प्रक्रिया में जैसी भीड़ बाजारों में उमड़ रही है और लोग जिस तरह सावधानी में चूक रहे हैं, वह चिंता बढ़ाने वाली है। निस्संदेह लंबे अर्से से जीवन में घुटन है, आर्थिक चिंताएं हैं, लेकिन थोड़ा और धैर्य भी जरूरी है।
दिल्ली में बाजारों और शॉपिंग मॉल्स को ऑड-ईवन आधार पर खोलने की इजाजत सार्थक कदम है। मेट्रो का पचास फीसदी क्षमता के साथ खुलना भी अच्छा है। कोरोना संकट की सबसे बड़ी मार झेलने वाले महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण की स्थिति को पांच स्तर पर बांटना सार्थक पहल है।
पहले वर्ग में कम संक्रमण के आधार पर सबसे ज्यादा व लेबल पांच के आधार पर सबसे कम छूट दी गई है। लंबे समय से घरों में बंद और रोजगार संकट से जूझ रहे लोगों के लिये यह राहतकारी जरूर है, मगर सावधानी फिर भी जरूरी है।
ऐसे में जब दूसरी लहर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है और विशेषज्ञ तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं, अतिरिक्त सावधानी में ही भलाई है। हमारा आगे का जीवन जल्दी से जल्दी सामान्य होना, हमारी सावधानी तथा इस दौरान हम टीकाकरण के लक्ष्य कितनी तेजी से हासिल करते हैं, पर ही निर्भर करेगा।