कांग्रेस की कलह

ऐसे वक्त में जब पंजाब सरकार का कार्यकाल समाप्त होने में चंद माह ही बाकी हैं, सत्तारूढ़ कांग्रेस में टकराव अपने चरम पर दिखा। निस्संदेह, यह संघर्ष सत्ता की महत्वाकांक्षाओं से जुड़ा है। सत्ता में चौधराहट हासिल करने की कवायद है। सत्ता में बड़ी हिस्सेदारी की चाहत का पर्याय है।

चार साल से अधिक के मौजूदा कार्यकाल में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह लगातार असंतुष्टों के निशाने पर ही रहे हैं, जिसमें कथित भ्रष्टाचार, बेअदबी के मामलों में अनिर्णीत जांच और बीते साल नकली शराब से हुई भयावह त्रासदी से राज्य सरकार की हुई किरकिरी जैसे विवादों को लेकर सरकार के मुखिया को निशाने पर लिया गया।

हाल ही के दिनों में ये हमले तेज हुए और इसमें राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तक की मांग की जाने लगी। दरअसल, इस आक्रमण की एक वजह यह भी है कि राज्य में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है और उसके लिये आगामी चुनाव में बेहतर संभावनाएं बनी हुई हैं।

हाल ही में लागू किये गये तीन विवादित कृषि सुधार कानूनों को लेकर राज्य में भाजपा शासित केंद्र के खिलाफ खासा आक्रोश है। ऐसे में राज्य में भाजपा की जमीन दरकती नजर आती है। भाजपा से जुड़ाव के कारण अकाली दल भी लोगों का विश्वास हासिल नहीं कर पाया है।

आम आदमी पार्टी भी संगठन में जारी गुटबाजी के चलते जनाधार खोती नजर आ रही है। यही वजह है कि कांग्रेस नेता अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनाव में पार्टी की बढ़त को लेकर आश्वस्त नजर आते हैं।

यही विश्वास पार्टी नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को हवा दे रहा है। महत्वाकांक्षी राजनेता सत्ता व पार्टी में बड़ी भूमिका की उम्मीद पाले हुए हैं, जिसके चलते पार्टी में टकराव की स्थितियां बनती नजर आ रही हैं। लेकिन राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले कैप्टन अमरिन्दर राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं और वे बचाव की मुद्रा में आने के बजाय असंतुष्टों के बाउंसरों को हिट कर रहे हैं।

हाल ही के दिनों में पार्टी में जारी असंतोष को असंतुष्ट नेताओं ने सार्वजनिक मंचों पर उजागर करना शुरू किया है। मीडिया के जरिये जोर-शोर से राज्य के मुखिया पर हमले बोले गये। असंतुष्ट नेता मुख्यमंत्री पर पार्टी नेताओं से दूरी बनाने और निरंकुश व्यवहार के आरोप लगाते रहे हैं।

ये असंतुष्ट नेता राज्य में सक्रिय आपराधिक सिंडिकेट विशेष रूप से भूमि, रेत, नशा और अवैध शराब माफियाओं को संरक्षण देने के आरोप लगाते रहे हैं। अक्सर विवादों में रहने वाले पूर्व क्रिकेटर व पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू वर्ष 2015 में हुए बेअदबी के मामले को जोर-शोर से उठाते रहे हैं। आरोप हैं कि मुख्यमंत्री दोषियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

यहां तक कि मामला कांग्रेस पार्टी हाईकमान तक पहुंचा है और कई कमेटियों ने मामला सुलझाने का प्रयास किया है। वहीं कैप्टन कहते हैं कि वे पार्टी में सत्ता के दो ध्रुव नहीं बनने देंगे। यह बयान उन संभावना पर था, जिसमें असंतुष्ट नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाने की बात थी।

अब मुख्यमंत्री के समर्थक भी आक्रामक मुद्रा में नजर आ रहे हैं। वे हाईकमान से मांग कर रहे हैं कि पार्टी के पुराने-वफादार लोगों को तरजीह दी जाए। वहीं कैप्टन अमरिन्दर सिंह व समर्थक आरोप लगाते रहे हैं कि सिद्धू अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिये पार्टी को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।

केंद्रीय नेतृत्व की दखल के बावजूद विवाद का पटाक्षेप होता नजर नहीं आ रहा है। निस्संदेह, विवाद का मौजूदा विषम परिस्थितियों में जनता में अच्छा संदेश नजर नहीं जा रहा है। आखिर जब राज्य सदी की सबसे बड़ी महामारी से जूझ रहा है तो क्या ऐसे विवादों को हवा दी जानी चाहिए? यह वक्त तो महामारी से हलकान जनता के जख्मों पर मरहम लगाने का है।

आर्थिक संकट से जूझ रहे राज्य को संबल देकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का है। निस्संदेह, ऐसे वक्त में जब देश में सिर्फ तीन राज्यों में ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह गये हैं, वर्ष 2022 में पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है।

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