सृजन संवाद

सुभद्रा कुमारी चौहान और महादेवी वर्मा दोनों का रिश्ता दो सगी बहनों से भी बढ़कर था। हालांकि, दोनों अपने समय की प्रख्यात कवयित्री होने के बाद भी उनमें ईर्ष्या और राग-द्वेष का नामोनिशान नहीं था।

सातवीं कक्षा की छात्रा सुभद्रा ने पांचवीं कक्षा की छात्रा महादेवी से कड़क आवाज़ में पूछा, ‘तुम कविता लिखती हो?’ स्पष्ट उत्तर न मिलने पर सीनियर छात्रा ने जूनियर से कहा, ‘तुम्हारे कक्षा की लड़कियां तो कहती हैं तुम गणित की कॉपी तक में कविता लिखती हो, दिखाओ।

’ सवालों के बीच-बीच में तुकबंदियां सचमुच लिखी थीं। देखते ही पकड़ में आ गईं। सुभद्रा ने एक हाथ से कसकर महादेवी का हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ में कॉपी थामी और खींचते हुए प्रत्येक कक्षा में ले जाकर कविता लिखने की अपराधिनी के अपराध की घोषणा करने लगी।

उस ज़माने में कविता लिखने या तुकबंदी करने को हिक़ारत की नज़र से देखा जाता था। अचानक सुभद्रा ने गियर बदला और कहा, ‘अच्छा तो लिखती हो। भला सवाल हल कर लेने में एक-दो-तीन जोड़ लेना कोई बड़ा काम है।

’ इस व्यवहार से आहत महादेवी ने होंठ भींचकर न रोने का जो निश्चय किया, वह न टूटा तो न टूटा, लेकिन सहानुभूति और आत्मीयता के ये बोल सुनकर आंखें भर आयीं।

‘तुमने सबको क्यों बताया?’ महादेवी के प्रश्न का सुभद्रा ने उत्तर दिया, ‘हमें भी तो यह सहना पड़ता है। अच्छा हुआ अब दो साथी हो गए।’

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