वन अधिकारियों की मिलीभगत से प्राणवायु मुहैया कराने वाले पेड़ों पर रात दिन चटक रहा कुल्हाडा

भरुआ सुमेरपुर। वन विभाग की मिलीभगत से लोगों को प्राणवायु मुहैया कराने वाले वृक्षों की कटान का सिलसिला निरंतर जारी है. जनपद के अलावा महोबा बांदा से लकड़ी काटकर यहां लाकर खपाई जाती है. प्रतिदिन करीब 5 हजार कुंतल लकड़ी यहां लायी जाती है. जिनमें प्रतिबंधित वृक्षों की लकड़ी भी शामिल रहती है.
कस्बे में संचालित लकड़ी माफियाओं की फर्मों पर यह लकड़ी खुलेआम पड़ी रहती है क्योंकि लकड़ी माफियाओं के अंदर किसी तरह की कार्रवाई का खौफ नहीं रहता है.
कभी-कभार वन विभाग खानापूर्ति के लिए किसानों की लकड़ी को पकड़कर कागजी कार्यवाही करके खुद ही अपनी पीठ थपथपा लेता है. लेकिन लकड़ी माफियाओं के खिलाफ कोई कार्यवाही करने की जुर्रत नहीं करता है. इससे लकड़ी माफियाओं के हौसले बुलंद है.
कोरोना काल में पूरे देश में लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. लोग कह रहे हैं पेड़ों को मत काटो लेकिन यहां ऐसा नहीं है. यहां रात दिन कुल्हाडा चटक रहा है. जिले भर में लकड़ी काटकर कस्बे के लकड़ी माफियाओं के यहां लाकर खपाई जा रही है.
लकड़ी से जुड़े एक कारोबारी ने बताया कि जिले के साथ महोबा के खन्ना क्षेत्र तथा बांदा के जसपुरा पैलानी तिंदवारी क्षेत्र से लकड़ी लाकर कस्बे के लकड़ी माफियाओं के यहां खपाई जाती है. प्रतिदिन करीब 5 हजार कुंतल लकड़ी कस्बे में लाई जाती है.
कहने को यह जलाऊ लकड़ी है लेकिन इसके अंदर आम नीम जामुन महुआ पीपल आदि की लकड़ी भी धड़ल्ले से लाई जाती है. यहां पर लकड़ी के 3 बड़े कारोबारी हैं.
एक का कारखाना पंधरी में चल रहा है दूसरे ने भौनिया गांव के पास लगा रखा है तीसरा कारोबारी फैक्ट्री एरिया में कारोबार करता है. दो लोगों का यह पुश्तैनी कारोबार बन गया है और यह करीब 3 दशक से ज्यादा समय से लकड़ी का कारोबार धड़ल्ले से कर रहे हैं.
भाजपा सरकार बनने पर यहां तैनात हुए ज्वाइंट मजिस्ट्रेट जोगेंद्र सिंह ने एक कारोबारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की थी. जब तक जोगेंद्र सिंह यहां तैनात रहे तब तक इन्होंने दोबारा कारोबार नहीं किया था.
उनके यहां से हटने के बाद उन्होंने दोबारा कार्य शुरू करने की हिम्मत जुटाई थी. मौजूदा समय में यह सभी कारोबारी जलाऊ लकड़ी की आड़ में प्रतिबंधित लकड़ी का कारोबार धड़ल्ले से कर रहे हैं.
कमाल की बात यह है कि लकड़ी का पूरा कारोबार मुख्यालय से होकर किया जाता है लेकिन कोई भी अधिकारी इनके वाहनों को चेक करने की जुर्रत नहीं करता है.
यही कारण है कि यह बेखौफ होकर जलाऊ लकड़ी की आड़ में चिरान के पटरे आदि औरैया इटावा मेरठ दिल्ली कानपुर लखनऊ आदि जगहों को धडल्ले से ले जाते हैं.
कस्बे में बंद रेंज कार्यालय होने के बाद वन अधिकारियों को दिनभर कस्बे में फर्राटा भरने वाले लकड़ी के ट्रैक्टर नजर नहीं आते हैं. वन क्षेत्राधिकारी ने अपना रटा रटाया जवाब देते हुए कहा कि कटान उनके क्षेत्र में नहीं होती है. लकड़ी उनके क्षेत्र में काटकर कैसे लाई जाती है इसका उनके पास किसी तरह का जवाब नहीं है।
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