शंकायें
देशव्यापी कोरोना संकट के बीच सोमवार को उम्मीद जगाने वाली खबर आई कि देश में संक्रमितों की संख्या तीन लाख से कम रही। यह संख्या पिछले 27 दिनों में सबसे कम रही और दो लाख इक्कासी हजार नये मामले सामने आये।
ठीक होने वालों का आंकड़ा संक्रमितों से अधिक रहा। चिंता की बात यह है कि देश में मरने वालों का आंकड़ा चार हजार से अधिक रहा। अब तक मरने वालों की संख्या पौने तीन लाख के करीब हो चुकी है और कुल संक्रमितों की संख्या ढाई करोड़ हुई है।
अभी भी 35 लाख लोग कोविड-19 का उपचार करा रहे हैं। इसी के साथ एक अच्छी खबर सोमवार को यह भी रही कि कोरोना वायरस के सभी वेरिएंट्स के खिलाफ असरदार डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ द्वारा विकसित पहली दवा बाजार में बिक्री के लिये आ गई।
जिसके बाबत स्वास्थ्य मंत्री और रक्षा मंत्री ने मीडिया को जानकारी दी। इस एंटी कोविड ड्रग 2-डीजी का पहला दस हजार डोज का बैच जारी किया गया। इसे डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंसेज ने विकसित किया है।
इसका व्यावसायिक उत्पादन हैदराबाद स्थित डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरी करेगी। इसे कोरोना वायरस पर असरकारी बताया जा रहा है और इसके प्रभाव से ऑक्सीजन संकट से उबरा जा सकता है।
बहरहाल, फिलहाल देश की चिंता कुछ राज्यों के ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहा संक्रमण है। विडंबना यही है कि देश में कोरोना संक्रमण की पहली लहर से ही सारी सुविधाएं शहरों पर केंद्रित रही हैं। गांवों में चिकित्सा ढांचा पहले ही चरमराया हुआ है।
ऐसे में यह उम्मीद करना बेमानी है कि इस विश्वव्यापी महामारी के दौर में ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा इस चुनौती का मुकाबला कर सकेगा। यही वजह है कि आईसीएमआर के निर्देशों के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गांवों में संक्रमण रोकने के लिये नये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। कहना कठिन है कि लगातार गंभीर होती जा रही स्थिति में ये दिशा-निर्देश किस हद तक कारगर साबित होंगे।
केंद्र सरकार ने रविवार को ग्रामीण इलाकों के लिये जो एसओपी यानी दिशा-निर्देश जारी किये हैं, उसके अनुसार प्रत्येक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा उप-जिला अस्पतालों में कोविड केंद्रित उपचार केंद्र बनाये जायें।
जिनमें कम से कम तीस बिस्तरों की व्यवस्था की जाये, जिसे आवश्यकता पड़ने पर बढ़ाया जा सके। साथ ही सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर रैपिड एंटीजन टेस्ट किट उपलब्ध होनी चाहिए। इसमें संक्रमितों व संदिग्ध मरीजों को अलग रखने की व्यवस्था पर जोर दिया गया है।
साथ ही ग्रामीण मरीजों की स्वास्थ्य जांच में आशा वर्कर व आंग्ानवाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका पर भी बल दिया गया, जिससे मरीजों के तापमान व ऑक्सीजन की मात्रा की जांच हो सके। साथ ही चिकित्सा परामर्श व गंभीर मरीजों को भर्ती कराने के बाबत भी दिशा-निर्देश दिये गये हैं।
इसके साथ ही पृथकवास में रहने वाले मरीजों के लिये किट व परामर्श उपलब्ध कराने पर बल दिया गया है ताकि समय रहते उन्हें उपचार मिल सके। निस्संदेह, यह उपक्रम केंद्र व राज्य सरकारों के आग लगने पर कुआं खोदने वाली प्रवृत्ति को ही दर्शाता है।
ऐसे वक्त में जब नदियों में तैरते शवों व गंगा के तट पर सामूहिक रूप से दफनाए गये शवों के चित्र हर संवेदनशील व्यक्ति को विचलित कर रहे हैं, ये प्राथमिक उपाय क्या गंभीर होती स्थिति में मददगार होंगे? जो व्यवस्थाएं हमें पिछली लहर के दौरान करनी चाहिए थीं, वो हम दूसरी लहर के पीक पर आने पर कर रहे हैं।
चिंता इस बात की भी है कि केंद्र सरकार के वैज्ञानिक तीसरी लहर के आने की बात भी कर रहे हैं। पहले ही लॉकडाउन व मंदी से त्रस्त आम आदमी की आर्थिक हालत वैसे ही खराब है और जीवनरक्षक दवाओं व साधनों की शहरों में ही किल्लत है तो ग्रामीण इलाकों में क्या हकीकत होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
वक्त की जरूरत है कि समय रहते ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को इतने पुख्ता ढंग से तैयार किया जाये ताकि उसके सामने तीसरी-चौथी कोई भी लहर आए, जन धन की हानि न हो।