लॉकडाउन से मजदूरों की जिंदगी सांसत में

काम न मिलने से घरों मे बैठे

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ब्लॉक की 57 ग्राम पंचायतों में है 33 हजार से ज्यादा मजदूर
भरुआ सुमेरपुर। कोरोना काल मे लगातार बढ़ रहे लाक डाउन का सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रों के मजदूरों की जिंदगी पर पड़ा है। पंचायतों के संचालन की व्यवस्था धड़ाम होने से गांव में मनरेगा का फावड़ा बंद पड़ा है।
 छोटे-मोटे निर्माण सामग्री के अभाव के ढप पडे है। ऐसे में रोज कमाने खाने वाले मजदूरों की जिंदगी सांसत में पड़ गई है। विकासखंड क्षेत्र की 57 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के जॉब कार्ड धारकों की संख्या 33 हजार 300 है।
पिछले 25 दिसंबर से ग्राम प्रधानों का चार्ज छिनने से इनके हाथ से भी काम लगभग छिन गया है. क्योंकि मौजूदा समय में मनरेगा योजना का कोई भी बड़ा काम किसी भी पंचायत में नहीं हो रहा है। एक तरह से यह योजना फिलहाल ढप ही है।
कुछ सैकड़ा मजदूरों को गांव में बन रहे सरकारी आवासों में जरूर कार्य दिया जा रहा है। इसके अलावा कोई दूसरा कार्य फिलहाल नहीं है।  जबकि शासन की गाइडलाइन है कि मनरेगा योजना के दो बड़े कार्य वर्ष पर्यंत पंचायतों में चलते रहना चाहिए।  लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है।
उम्मीद जताई जा रही है कि नवनिर्वाचित प्रधानों के शपथ ग्रहण के बाद मनरेगा योजना के कार्यों को पटरी पर लाया जाएगा। तब तक दिहाड़ी मजदूरों को इधर उधर से ही काम का जुगाड़ करना पड़ेगा।  सोमवार को 57 ग्राम पंचायतों में मनरेगा के 871 जॉब कार्ड धारक मजदूरों को कार्य दिया गया था. यह एक तरह से ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
लाक डाउन की अवधि मे लगातार इजाफा होने पर मजदूरों की जान सांसत में फंस गई है। मजदूर देवीदीन, गंगाराम, राम आसरे, रामधनी, संतोष कुमार, श्री राम, धनी राम, राम भरोसे, तुलैंया, बंदर, सीताराम, रामखिलावन, रामदास आदि ने बताया कि पंचायतों में काम लगभग ठप है। फसलों की कटाई का कार्य पूर्ण हो चुका है। इस वजह से खेती किसानी में अभी डेढ़ माह तक किसी तरह का कार्य मिलना संभव नहीं है। लॉकडाउन के कारण निर्माण सामग्री गांव तक लाने में दिक्कतें हो रही है।
इस वजह से गांव में चलने वाले छोटे-मोटे निर्माण भी ढप हैं. इससे गांवों में इस समय कार्य का अभाव है। मजदूरों ने कहा कि लॉक डाउन के कारण बाहर भी नहीं जा रहे पा रहे हैं।
खाली हाथ घरों में ही बैठकर लाक डाउन खत्म होने का इंतजार किया जा रहा है। मजदूरों ने कहा कि सरकार ने मुफ्त अनाज के साथ एक हजार रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा की है लेकिन यह नाकाफी है। इससे परिवार का भरण पोषण नहीं किया जा सकता है। सरकारों को गांव में ही रोजगार के अवसर मुहैया कराने के इंतजाम कराने चाहिए तभी मजदूरों का भला होगा।
खंड विकास अधिकारी अभिमन्यु सेठ ने बताया कि चुनावी व्यस्तता के कारण मनरेगा योजना के कार्य प्रभावित हुए थे। अब सभी तकनीकी सहायकों के साथ रोजगार सेवकों को स्टीमेट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही पंचायतों में मनरेगा के दो दो कार्य शुरू कराकर मजदूरों को गांव में ही रोजगार मुहैया कराया जाएगा।
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